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________________ ( ४१ ) मानसिंह सेवड़ा "बादशाह लिखता है कि सेबड़े हिन्दु नास्तिकों में से हैं जो सदैव नंगे सिर और नंगे पांव रहते हैं। उनमें कोई तो सिर और दाढ़ी मूछ के बाल उखाड़ते हैं और कोई मुडाते हैं । सिला हुआ कपड़ा नहीं पहिनते । उनके धर्म का मूलमन्त्र यह है कि किसी जीव को दुःख न दिया जावे । बनिये लोग इनको अपना गुरु मानते हैं दण्डवत करते हैं और पूजते हैं । इन सेवड़ों के दो पंथ हैं। एक तपा दूसरा करतल ( खरतर )। मानसिंह करतर वालों का सरदार था और बालचन्द तपा का। दोनों सदा स्वर्गवासी श्रीमान् की सेवा में रहते थे । जब श्रीमान के स्वर्गारोहण पर खुसरो भागा और मैं उसके पीछे दौड़ा तो उस समय बीकानेर का ज़मीदार रायसिंह भुरटिया जो उक्त श्रीमान् के प्रताप से अमीरी के पद को पहुंचा था मानसिंह से मेरे राज्य की अवधि और दिन दशा पूछता है और वह कलजीभा जो अपने को ज्योतिष विद्या और मोहनमारण और वशीकरणादि में निपुण कहा करता था उससे कहता है कि इसके राज्य की अवधि दो वर्ष की है। वह तुच्छ जीव उसकी बात का विश्वास करके बिना छुट्टी ही अपने देश को चला गया। फिर जब पवित्र परमात्मा प्रभु ने मुझ निज भक्त को अपनी दया से सुशोभित किया और मैं
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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