________________
( ३९ ) न गुरु छुड़ा सकता है। इतना ही क्यों पर लौकिक सुख यानी धन सम्पत्ति के लिये देवगुरु की उपासना करना ये खास लोकोत्तर मिथ्यात्व का ही कारण है और जो लोग तीर्थकर देवों की सेवा उपासना छोड़ उन उत्सूत्रवादियों की सेवा उपासना करते हैं तो वे उत्सूत्रवादी अपने संसार की वृद्धि से कुछ हिस्सा उन उपासकों को भी देंगे, इनके अलावा और क्या फल हो सकता है ? ___ अन्त में मैं अपने पाठकों को सावधान कर देता हूँ कि इस खरतर मत के जाल से सदैव बच कर रहें। कई अर्सा तक तो यह लोग भद्रिकों को यह कह कर धोखा दिया करते थे कि आप दादाजी की मान्यता रखो आपको खूब धन मिलेगा । पर अब वे हिमायत करने वाले भी सफाचट हो बैठे हैं, अतः कर्म सिद्धान्त को मानने वाले इस प्रकार के धोखे में नहीं आते हैं। इन चमत्कार के लिये श्रीमान् केसरचन्द्रजी चोरडिया की लिखी 'खरतरों की बातें' नाम की पुस्तक मँगा कर पढ़िये कि जिससे आपको ठीक रोशन हो जायगा कि इन धूत लोगों ने किस २ प्रकार कल्पित बातें बना कर जनता को धोखा दिया हैं और अब इनकी किस प्रकार से कलई खुल गई और कैसे हँसी के पात्र बन गये हैं। खैर इस तीसरे भारा को मैं यहाँ ही समाप्त कर देता हूँ। यदि इस विषय में खरतर ज्यादा बकवाद करेंगे तो यहाँ भी मसाले की कमी नहीं है ।
__ॐ शान्तिः ॐ शान्तिः ॐ शान्तिः ।