SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२) असहायणाऽविविहि पसहिउ जो न सेस सूरीहिं । लोअणपहेविवच्छइ पुण जिणमयण्णूणं ॥१२२॥ व्याख्या। ततोयेन भगवता असहायेनापि एकाकिनापि पस्कीय सहाय निरपेक्षं अपिविष्मये अतीवाश्चर्य मेतविधि रागमोक्तः षष्ठकल्याणक रुपश्वेत्यादि विषयः पूर्व प्रदर्शितश्च प्रकारः प्रकर्षेणेदमित्थमेव भवति योनार्थेऽसहिष्नुः सवावदीत्विति स्कंधास्फालनपूर्वकं साधितः सकल प्रत्यक्ष प्रकाशितः यो नशेष सूरीणामज्ञात सिद्धान्त रहस्यानामित्यर्थःलोचनयथेऽपि दृष्टिमार्गे आस्तांतिपये व्रजतियाति । उच्यते पुनजिनमतभंगवद्वचन वेदिभिरिति । गणधरसाद्ध शतक मूलगाथा १२२ तथा वृहद् वृत्ति ___ इस लेख में भी साफ २ लिखा है कि जिनवल्लभ ने चितौर में कंधा ठोक कर महावीर के गर्भापहार नामक छठा कल्याणक की प्ररूपना की यदि यह प्रवृति नई न होती तो जिनवल्लभ को कंघे ठोकने की क्या जरूरत थी, जब खास खरतरों का माननीय अन्य इस बात को प्रमाणित कर रहा है तो फिर दूसरे प्रमाणों की आवश्यता ही क्या है ? यह तो हुए खरतरों के घर के प्रमाणों की बात । अब आगे चलकर हम जैन शास्त्रों की ओर दृष्टिपात कर देखेंगे कि जैनागमों में भगवान महावीर के कल्याणक पांच बतलाते हैं या छः। जिनवल्लभसूरि ने जिस कल्पसूत्र के पाठ पर अपने नये मत
SR No.032637
Book TitleKhartar Matotpatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala
Publication Year1939
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy