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________________ प्रकाशित होते हुये प्राग्वाट इतिहास से उद्धृत बैं प्रस्तुत पुस्तिका केवल संघवी धरणाशाह का ही इतिहास है जो प्रकाशित होते हुये प्राग्वाट - इतिहास से उद्धृत किया गया है । अतः इसमें स० धरणाशाह का वर्णन, उसके द्वारा विनिर्मित श्री त्रैलोक्यदीपक - नलिनी गुल्मविमान - धरणविहार नामक श्री चतुर्मुखश्रादिनाथ जिनालय - राणकपुरतीर्थ तथा उसके प्रशस्त अन्य पुण्यकार्यों का यथाप्राप्त उल्लेख और उसके वंश का परिचय दिया गया है । वर्तमान में इस तीर्थक्षेत्र में दो अन्य जैनदेवालय भी बने हुए हैं, वे भी प्राचीन ही हैं तथा अन्य प्राग्वाटज्ञातीय, उपकेशज्ञातीय, श्रीमालज्ञातीय अनेक सद्गृहस्थबंधुत्रों ने इस तीर्थ में भिन्न २ . समयों पर पुष्कल द्रव्य व्यय करके बड़े २ पुराय कार्य, निर्माण-कार्यादि करवाये हैं; परन्तु इस पुस्तक के उद्देश्य से बाहर होने के कारण उनके विषय में यहाँ कुछ भी नहीं लिखा जा सका है । पाठक इस सकारणता के लिये क्षमा करें । श्री धरणविहार राणकपुरतीर्थ का शिल्प कला की दृष्टि से वर्णन लिखने के लिये तथा प्रतिमादि के लेख लेने के लिये मैं तीर्थ में ई० सन् ता० ३०-५-५० से ३-६-५०तक जब ठहरा था, पीढ़ी के मुनीम श्री हरगोविंद हेमचन्द भाई ने तत्परतापूर्ण सुविधायें दी थी तथा सराहनीय सहयोग-भाव प्रदर्शित किया था। वे अपनी इस सहृदयता के लिये धन्यवाद के पात्र हैं । - लेखक
SR No.032636
Book TitleSanghvi Dharna aur Dharan Vihar Ranakpur Tirth ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Sangh Sabha
Publication Year1953
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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