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________________ [श्रेछि संघवी धरणा बनी हुई हैं, जो आमने-सामने की दिशाओं में संख्या और आकार-प्रकार में एक-सी हैं। ये कुल देवकुलिकायें संख्या में ८० हैं। इनमें से छिहत्तर देवकुलिकायें तो एक-सी शिखरबद्ध और छोटी हैं। ४ चार इनमें से बड़ी हैं, जिनमें से दो उत्तर-द्वार की प्रतोली के दोनों पक्षों पर हैं-पूर्व पक्ष पर महावीरदेवकुलिका और पश्चिम पक्ष पर समवसरणकुलिका है। इसी प्रकार दक्षिण द्वार की प्रतोली के पूर्व पक्ष पर आदिनाथकुलिका और पश्चिम पक्ष पर नंदीश्वरकुलिका है। इन चारों की बनावट विशालता एवं प्रकार की दृष्टि से एक-सी हैं । ये चारों गुम्बजदार हैं। इनके प्रत्येक के आगे गुम्बज़दार रंगमण्डप.है, जो छोटी देवकुलिकाओं के प्रांगण-भाग से आगे लिकला हुआ है। समस्त छोटी देवकुलिकाओं का प्रांगण स्तम्भ उठा कर छतदार बनाया हुआ है। उपरोक्त संगमएड़पों तथा देवकुलिकाओं के प्रांगण के नीचे भ्रमती है, जो चारों कोणों की विशाल शिखरबद्ध देवकुलिकाओं के पीछे चारों प्रतोलियों के अन्तरमुखों को स्पर्श करती हुई और चारों दिशाओं में बने चारों मेघ-मण्डपों को स्पर्शती हुई चारों ओर जाती है। ......... ............ कोणकुलिकाओं का: चारों कोणों में चार शिखरबद्ध चार 'वर्सन. ...... विशाल देवकुलिकायें हैं। प्रत्येक देवालिका ......... के आगे विशाल गुम्बजदार रंग-मण्डप है। इन देवालिकाओं को महाधर-प्रासादःभी लिखा है। ये इतनी विशाल हैं कि प्रत्येक एक अच्छा जिनालय है। ये चारों भिन्न २.व्यक्तियों द्वारा बनवाई गई हैं । इनमें जो लेख हैं वे वि० सं०.१५०३, १५०७, १५११. और १५१६ के हैं। इस प्रकार धरणविहार में अस्सी दिशाकुलिकायें और चारः कोण-कुलिकायें मिलाकर कुल चौरासी देवकुलिकायें हैं।. .
SR No.032636
Book TitleSanghvi Dharna aur Dharan Vihar Ranakpur Tirth ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Sangh Sabha
Publication Year1953
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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