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________________ [श्रेष्ठि संघवी धरणा गजनीखों का बादशाह मांडवगढ़ का बादशाह हुसंगशाह कुछ बनना और मांडवगढ़ में ही समय पश्चात् वि० सं० १४६१ ई० धरणाशाह को निमं- सन् १४३४ में भर गया और शाहजादा त्रण तथा कारागार का गजनीखाँ बादशाह बना। सं० धरणा दंड और चौरासी ज्ञाति को नांदिया ग्राम से उसने मानपूर्वक के एकलक्ष सिक्के देकर निमन्त्रित करके बुलवाया और तीन छूटना और नादिया लक्ष के स्थान पर ६ लक्ष द्रव्य देकर ग्राम को लौटना अपना ऋण चुकाया तथा सं० धरणा को राजसभा में उच्चपद् प्रदान किया। सं० धरणा पर बादशाह गजनीखाँ की दिनोंदिन प्रीति अधिकाधिक बढ़ने लगी। यह देखकर मांडवगढ़ के अमीर और उमराव सं० धरणा से ईर्ष्या करने लगे। सं० धरणा इन सर्व की परवाह करने वाला व्यक्ति नहीं था। परन्तु कलह बढ़ता देखकर उसने मांडवगढ़ का त्याग करके नांदिया आना उचित समझा, परन्तु बादशाह ने सं० धरणा को नांदिया लौटने की आज्ञा प्रदान नहीं की। सं० धरणा बड़ा ही धर्मात्मा एवं जिनेश्वर-भक्त था। उसने शत्रुञ्जयतीर्थ की संघयात्रा करने का विचार किया और बादशाह की आज्ञा लेकर संघ-यात्रा की तैयारी करने लगा। इस पर सं० धरणा के दुश्मनों को बादशाह को बहकाने का अवसर हाथ लग गया। उन्होंने बादशाह से कहा कि सं० धरणा संघ-यात्रा का बहाना करके नांदिया लौटना चाहता है तथा मांडवगढ़ में अर्जित विपुल सम्पत्ति को भी साथ ले जाना चाहता है। बादशाह गजनीखाँ बड़ा ही दुर्व्यसनी और व्यभिचारी था और पैसा ही कानों का अत्यधिक कच्चा भी था। अतः उसके दरबार में नित नये षड़यन्त्र बनते रहते थे और History of Mediaeval India by Iswari Prasad P.388
SR No.032636
Book TitleSanghvi Dharna aur Dharan Vihar Ranakpur Tirth ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Sangh Sabha
Publication Year1953
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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