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बानी बसै सुकवि भानन मैं सयानी; .
मानी जु जाय यह बात कही परानी। तौ सत्य-सत्य कविता कविरत्न तेरी
वाही त्रिलोकपरिपूजित देवि प्रेरी ॥१॥
तेजोनिधान रवि-बिंब सुदीप्ति-धारी;
श्राह्लादकारक शशी निशिताप हारी। जो थे प्रकाशमय पिंड न ये बनाए :
तो व्योम बीच कब ये किस भाँति पाए ? ॥२॥ समालोचना लिखने में द्विवेदीजी ने दोषों का वर्णन खूब किया है। आपकी रचनाओं में अनुवाद ग्रंथों की प्रचुरता है।
(२३७७) नंदकिशोर शुक्ल ये टेढ़ा, जिला उन्नाव के निवासी हैं । आपने राजतरंगिणी-नामक काश्मीर के प्रसिद्ध इतिहास-ग्रंथ के प्रथम भाग का हिंदी-गद्य में अनुवाद किया है। इनके और भी कई ग्रंथ अनुवादित तथा रचित हैं । आपकी अवस्था ६४ साल की होगी। आपके ग्रंथों में सनातनधर्म वा दयानंदी मर्म, उपनिषद् का उपदेश और भारतभक्ति प्रधान हैं। अापने कुल १३ ग्रंथ रचे । श्राप भारतधर्ममहामंडल के महोपदेशक हैं।
(२३७८ ) रत्नकुँवरि बीबी। ये महाशया मुर्शिदाबाद के जगत्सेठ घराने में जन्मी थीं और इन्होंने वृद्धावस्था तक बहुत सुखपूर्वक पुत्र-पौत्रों में अपना समय व्यतीत किया । बाबू शिवप्रसाद सितारोहिंद इनके पौत्र थे। ये संस्कृत और फारसी की अच्छी ज्ञाता थीं और योगाभ्यास में मी इन्होंने श्रम किया था । इनका आचरण बहुत प्रशंसनीय और अनुकरणीय था । इन्होंने संवत् १९४४ में प्रेमरत्न-नामक ग्रंथ बनाकर उसमें "श्रीकृष्ण व्रजचंद आनंदकंद की लीलाओं का उल्लेख परम