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परिवर्तन-प्रकरण
इन महाशय की रचना के ये ग्रंथ हैं— सत्यार्थप्रकाश, वेदांग - प्रकाश, पंचमहायज्ञविधि, संस्कारविधि, गोकरुणानिधि, श्रार्योद्देश्यरत्नमाला, भ्रमोच्छेदन, भ्रांतिनिवारण, श्रार्याभिविनय, व्यवहारभानु, वेदविरुद्ध मतखंडन, स्वामीनारायणमतखंडन, वेदांतध्वांतनिवारण, ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका, ऋग्वेदभाष्य और यजुर्वेदभाष्य । इन्होंने जितने भाषा-ग्रंथ लिखे, उनमें वर्तमान शुद्ध हिंदी का प्रयोग किया । श्रापकी भाषा बहुत ही सरल होती थी ।
१:१.१७
संस्कृत के बड़े भारी विद्वान् होने पर भी आपने विशेषतया हिंदी को श्रादर दिया और अपने प्रायः सभी ग्रंथ हिंदी में लिखे ।
ऐसे महात्मा पुरुष इस संसार में बहुत कम हुए हैं । इन्होंने यावजीवन अखंड ब्रह्मचर्य व्रत रक्खा और सदैव परोपकार तथा देश-सेवा की। अपने उपदेशों में आप भारतोन्नति का बहुत बड़ा ध्यान रखते थे । यदि इनका मत पूरा-पूरा स्थिर हो जावे, तो भारत की बहुत-सी अवनतिकारिणी रस्में एकबारगी मिट जावें । जैसे महात्मा बुद्धदेव ने अपने समय की भारतमूलोच्छेदनकारिणी सभी चालों को हटाकर सीधा-सादा बौद्धधर्म चलाया था, उसी प्रकार इस महर्षि ने भारतमुखोज्ज्वलकारी श्रार्य-समाज के सिद्धांतों को स्थिर किया है । यह एक ऐसी औषध है, जिसके भले प्रकार सेवन से भारत के सभी भारी रोग-दोष शांत हो सकते हैं । अर्थशास्त्र को धर्मसिद्धांतों से मिलाकर इहलोक और परलोक दोनों में सुखद मत स्थापित करने में यह महात्मा समर्थ हुआ । वेदों को इसी महात्मा ने पुनर्जन्म- सा दिया । भारतवर्ष में बुद्धदेव, शंकर स्वामी और स्वामी दयानंद यही तीन मुख्य धर्मप्रचारक हुए हैं । इस महात्मा से संस्कृत तथा हिंदी प्रचार को भी बहुत बड़ा लाभ पहुँचा और आर्य समाज के