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मि-विनोद नाम-(२००५) हृदेश, झाँसी। ग्रंथ-विश्ववशकरन । रचनाकाल-१९०४। उदाहरणघोर घन सघन मदांध मतवारे फिरे,
धुरवा धुकारन सों धरा धमकत है; गरज गरजकर लरजत भूमि चूमि,
झूमत झुकत मद बुंद झमकत है। भनत हृदेश लखै लाडिली अटा पै चदि,
अंग-अंग नग जगमग दमकतं है; नीलपट उमरि घटा-सी बहरात काम,
तरफ छटा-सी चंचला-सी चमकत है। नाम-(२००५ ) कर्पूर विजय या चिदानंद । ग्रंथ-स्वरोदय, माध्यास्मिक स्फुट पद । रचनाकाल-१६०५ के पूर्व । विवरण-संवेगी साधु तथा अपने रंग में मस्त रहा करते थे।
उदाहरण- जौ लौ तत्त्व न सूझ पड़ेरे।। सौ बौं मूढ़ भरम बस भूल्यौ मत समता गहि जग सों बहेरे । अकर रोग शुभ कंप अशुभ लख भवसागर इण भाँति मढेरे। धान काज जिम मूरख खितहड़ उसर भूमि को खेत खदेरे। उचित रीति अोलख बिन चेतन निस दिन खोटो घाट घरे ; मस्तक मुकुट उचित मणि अनुपम पग भूषण प्रज्ञान जडैरे । कुमता वश मन वक्र तुरग जिम गहि विकल्प मग माँहि अरे ; चिदानंद निज रूप मगन भया तब कुसर्क मोहि नाहिं नरे।
नाम-(२००६) परमसुख ।