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________________ मिश्रबंधु-विनोद त्रैवार्षिक रिपोर्ट में इनका एक और ग्रंथ प्रेमप्रधान भाव-संबंध रसकरण मिला है। इनमें भी रामचंद्र का ही रसात्मक वर्णन है। उदाहरण- नाना विधि लीला ललित, गावत मधुरे रंग ; नृत्य करत सखि सुंदरी, बाजत ताल मृदंग । चंदन चरचे अंग सब, कुंकुम अतर कपूर ; रचि सुमनन को माल बहु, पहिराई भरपूर । (१८०२ ) परमानंद इनके केवल दो छंद हमने देखे हैं। इनका कोई भी हाल हमें ज्ञात न हुआ। इनकी कविता और बोलचाल अच्छी है। सुनते हैं कि इस नाम के दो कवि हो गए हैं, एक अजयगढ़ रियासत (बुंदेलखंड) के रहनेवाले संवत् १६०० के अासपास हुए हैं, और दूसरे पद्माकरवंशी दतिया में संवत् १९३० में रहते थे। प्रथम त्रैवार्षिक रिपोर्ट में अजयगढ़वाले परमानंद का हनुमन्नाकट दीपिका-नामक ग्रंथ लिखा है। जो कवित्त हमने देखे हैं, वे किस परमानंद के हैं, सो हम नहीं कह सकते । ये महाशय साधारण श्रेणी के कवियों में हैं। छाई छवि अमल जुन्हाई-सी बिछौनन पै, तापर जुन्हाई जुदी दीपति रही उमंग ; कवि परमानंद जुन्हाई अवलोकियत, जहाँ-तहाँ नील कंज पंजन परै प्रसंग । सोनजुही माल किधौं माल मालती की, पहिचानियत कैसे सनी पंकज सुगंध संग ; आवत निहारी हौंतिहारे सेज प्यारे, - पग धरत चुभोई परै गहब गुलाबी रंग ॥१॥ (१८०३ ) गिरिधरदास सुप्रसिद्ध बाबू हरिश्चंद्र के पिता काशी-निवासी बाबू गोपालचंद्रजी
SR No.032634
Book TitleMishrabandhu Vinod Athva Hindi Sahitya ka Itihas tatha Kavi Kirtan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshbihari Mishra
PublisherGanga Pustakmala Karyalay
Publication Year1929
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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