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________________ लिखा है कि स्त्रियाँ भी गुलामी की मार से बचने के लिये भिक्षुणियाँ हो जाती थीं । बुद्ध के जीवन काल में ही बौद्ध संघों में व्यभिचार के अड्डे बन गये थे। इस कारण बुद्ध बड़े दुखी भी थे । अशोक ने तो स्वार्थियों और बदमाश भिक्षुत्रों को संघ से निकाल कर बौद्ध संघ का संस्कार भी किया था। इससे यह स्पष्ट होता है कि बौद्ध और जैन धर्मों को उनका संघ बल भी प्रभावित करता था। और इन संघों में हीन-संस्कार के लोग घुसे थे, जो अपने हीन-संस्कार का प्रभाव डालते रहते थे। इस कारण समाज में आचरण की ओर तो शिथिलता थी और शब्दों में त्याग, तपस्या तथा ब्रह्मचर्य का बोलबाला था। असलीयत तो बहुत कम थी ; पर ढोंग का बाजार गरम था। चरित्र में अोछापन, किन्तु वचन में तेजी थी। अशोक के बाद कोई ऐसा मौर्य नहीं पैदा हुआ, जो कुसंस्कार को शुभ संस्कार में बदल सकता, जो असंयम को संयम में बदल सकता, जो धार्मिक ढोंग को हटाकर जीवन में पौरुष की प्रतिष्ठा कर सकता। पुष्यमित्र का आविर्भाव- ... . जिन बौद्धों और जैनों का कर्तव्य था ब्राह्मण ढोंग और कमजोरियों से समाज की रक्षा करना, वही ढोंगी और कमजोर हो गए थे। बौद्धों और जैनों के ढोंग से प्रजा परेशान थी। इसके अलावा विदेशियों के हमले और बौद्धों तथा जैनों द्वारा विदेशियों के समर्थन ने तो और भी गजब ढाया । ब्राह्मणों को मौका मिला। उन्होंने पतंजलि के नेतृत्व में बौद्धों और जैनों का विरोध करना शुरू कर दिया। शासन सत्ता पर बृहद्रथ नामक बौद्ध राजा बैठा था। इसलिए ब्राह्मणों के विरोध ने राजनीतिक रूप धारण किया। साधारण ग्रहस्थों पर ब्राह्मणों का प्रभाव सदैव से था। अतः ब्राह्मणों के बौद्ध-जैन विरोध ने सामाजिक रूप धारण करना शुरू कर दिया। इसीलिए प्रजारक्षण की प्रतिज्ञा में दुर्बल, अन्तिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ को उसी की सेना के सामने सेनापति पुष्यमित्र शुग ने खुले खजाने सूर्य के चमकते प्रकाश में बाण से मार कर
SR No.032629
Book TitleMagadh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaijnath Sinh
PublisherJain Sanskruti Sanshodhan Mandal
Publication Year1954
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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