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________________ कर दिया था। वे सातो अंग इस प्रकार थे-राजा, अमात्य जनपद, दुर्ग, कोष सेना और मित्र । इन अंगों के अलावा साम्राज्य की सीमा पंच चक्रों से सम्बद्ध थी। १. उत्तर पथ-इसमें कम्बोज, गान्धार, काश्मीर, अफगानिस्तान, पंजाब श्रादि के प्रदेश शामिल थे। इसकी राजधानी तक्षशिला थी। २. पश्चिमी चक्र—इसमें काठियावाड़-गुजरात से लगाकर राज पूताना, मालवा आदि के प्रदेश शामिल थे। उज्जैन इसकी राजधानी थी। ३. दक्षिण पथ-बिन्ध्याचल से नीचे का सारा प्रदेश । इसकी राजधानी सुवर्ण गिरि थी। ४. कलिंग-इसकी राजधानी तोसली थी। ५. मध्यदेश-इसमें बिहार, बंगाल, और उत्तर प्रदेश शामिल थे । इसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी। चार चक्रों का शासन तो राजकुमार अथवा राजामात्य करते थे। पर पांचवें चक्र-अर्थात्-मध्यदेश का शासन स्वयं सम्राट देखते थे। मगध साम्राज्य के पांचों चक्रों की और स्वयं सम्राट की सहायता के लिये मन्त्रिमण्डल का काम सलाह देना तो था। पर शासक उसे मानने के लिये बाध्य नहीं थे। वस्तुतः उसको मानना न मानना सम्राट की वैयक्तिक शक्ति पर निर्भर था। पर आम तौर से सम्राट मन्त्रिमण्डल की राय को मानते थे। मन्त्रिमण्डल के कार्य थे-१. राज्य द्वारा प्रस्तावित कामों को प्रारम्भ करना, २. जो काम प्रारम्भ हो गये हों, उनको पूरा करना, ३. जो काम पूरे हो गये हों, उनमें और भी वृद्धि करना और ४. सब कामों की पूर्ति के लिये साधन एकत्र करना ।
SR No.032629
Book TitleMagadh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBaijnath Sinh
PublisherJain Sanskruti Sanshodhan Mandal
Publication Year1954
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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