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की हैं उन्हें तो खरतरों ने मिट्टी में ही मिला दिया । यदि ऐसे धर्म और अन्याय करने में भी खरतरों ने गच्छ का अभ्युदय समझा हो तो इससे अधिक दुःख की बात ही क्या हो सकती है ।
खरतरों ने चोरड़िया, बाफना, संचेती और राकों को स्वतंत्र गोत्र लिख कर उनको खरतराचार्य प्रतिबोधित होना ठहराने में कई कल्पित ख्यातें रच डाली हैं । पर उनको इतना ही ज्ञान नहीं था कि चोरड़िया आदि मलगोत्र हैं या किसी प्राचीन गोत्र की शाखाएँ हैं ? इसके निर्णय के लिए हम ऊपर प्रमाण लिख आये हैं । उनकी प्रमाणिकता के लिये यहाँ कुछ सर्वमान्य शिला- लेख उद्धत कर दिये जाते हैं ।
१ - चोरड़िया जाति किस मूल गोत्र की शाखा है ? जिसके लिये शिलालेखों में इस प्रकार उल्लेख मिलते हैं:
“सं १५२४ वर्षे मार्गशीर्ष सुद १० शुक्रे उपकेश ज्ञाती आदित्यना गगोत्र स० गुणधर पुत्र० स० डालण भ० कपूरी पुत्र स० क्षेमपाल भ० जिणदेवा इ पु० स० सोहिलेन भातृ प्रासदत्त देवदत्त भार्या नानूयुतेन पित्र पुण्याथ श्री चन्द्रप्रभ चतुर्विंशति पट्टकारितः प्रतिष्ठित श्री उपकेश गच्छे ककुदा चार्य संताने श्री कक्कसूरिभिः श्री भट्टनगरे ।
बाबू पूर्ण ० सं. शि. प्र० पृष्ट १३ लेखांक ५०
"सं. १५६२ व० वै० सु० १० रवो उकेशाज्ञातौ श्री आदित्यनाग गोत्र चोरवेड़िया शाखायाँ व०