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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/ 97 न्याय वस्तुतः इस शरीर सम्बंध से शुद्धि हैं। शुभत्व का सबसे उच्चतम प्रकार तब उपलब्ध होता है, जब आत्मा का शरीर के साथ कोई सम्बंध नहीं होता और वह पूरी तरह बुद्धि की ओर मुड़ जाता है और ईश्वर की समानता को प्राप्त कर लेता है। हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि प्लोटीनस स्वयं भी इस अर्थ में प्लेटोवादी है, क्योंकि वे भी यह मानते हैं कि आत्मा की शुद्धि के लिए प्राकृतिक शारीरिक क्षुधाओं का पूर्ण विगलन आवश्यक है, किंतु यह निवृत्तिमार्गी निष्कर्ष अपनी पूर्ण व्यापकता के साथ उनके शिष्य पोरकिरी द्वारा प्रस्तुत किया गया। __ यद्यपि नव प्लेटोवाद के पुद्गल से ऊपर उठने की दिशा में एक उच्च बिन्दु और भी है, जिस पर अभी पहुंचना है और यहीं प्लोटिनस की प्लेटो के आदर्शवाद से अलग होना कम आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि यह प्लेटो की शिक्षाओं पर निष्ठापूर्ण चिंतन का मौलिक परिणाम था। प्लेटो की तत्वमीमांसा की प्रमुख मान्यता यह थी कि सत् जितने अंश में है वह सत् है, निश्चित ही शेय एवं विचार का विषय है, ताकि मनस् जैसे ही इंद्रियगम्य पदार्थों से अमूर्तता की ओर एवं वास्तविक सत्ता को बोध के लिए प्रगति करता है, उसके विचार उतने ही निश्चित और स्पष्ट होते हैं। प्लोटीनस का कहना यह है कि सभी विचारों में किसी न किसी रूप में विभेद या द्वैत का भाव रहता है और वह, जिसे हम ईश्वर कहते हैं, विश्व का प्राथमिक तथ्य नहीं हो सकता है। उसे अवश्य ही इस द्वैत से परे अनिवार्य तथा एक अद्वैततत्व ही होना चाहिए अर्थात् एक ऐसी सत्ता, जो बिना विभेद और बिना निर्धारण के सत्तावान हो। तदनुसार मानवीय सत्ता का सर्वोच्च स्वरूप, जिसमें आत्मा परमसत्ता का साक्षात्कार करता है, अद्वय होगा। उस भावातिरेक या समाधि की अवस्था में सारी आत्मचेतना विलुप्त होगी और सभी विकल्पयुक्त विचारों का अतिक्रमण हो जाएगा। फोरफे री का कहना है कि उसके गुरु प्लोटीनस ने इस सर्वोच्च स्थिति को उन छह वर्षों में चार बार प्राप्त किया था, जबकि पोरफेरी उनके सान्निध्य में था। नव प्लेटोवाद मूलतया यूनानी है और प्राचीन एथेन्स की भूमि पर विकसित होने के पूर्व इसके अस्तित्व की लगभग एक शताब्दी से अधिक व्यतीत हो चुकी थी, इसीलिए इसे अक्सर यूनानी की अपेक्षा यूनान का कहा जाता है। यह प्राचीन सभ्यता के ग्रीस की सभ्यता के साथ हुए मिश्रण का परिणाम है। यद्यपि निवृत्तिमार्ग और धार्मिकता के दृष्टिकोणों से उत्साहपूर्वक
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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