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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/ 61 और उसके विरोधी शब्द केवल शारीरिक क्षुधाओं के संदर्भ में ही प्रयुक्त किए जाते हैं, क्रोध आदि दूसरे अबौद्धिक आवेगों के सम्बंध में उनका प्रयोग गौण अथवा लाक्षणिक रूप में ही किया गया है। साहस और मिताचार (संयम) के पश्चात, जो कि मनुष्य की आदिम या पाशविक इच्छा और अनिच्छा के नियमन से सम्बंधित है, अरस्तू सद्गुणों की एक दूसरी जोड़ी प्रस्तुत करता है, जो कि क्रमशः मनुष्य की सुसभ्य एवं सुसंस्कृत इच्छाओं और साध्यों के मुख्य विषय सम्पत्ति और सम्मान से सम्बंधित है। इनमें से प्रत्येक का हमें उन अच्छाइयों से अंतर करना पड़ेगा, जिन्हें सब कोई प्राप्त कर सकते हैं और जिन्हें कुछ चुने हुए लोग ही प्राप्त कर सकते हैं। इसी प्रकार सम्पत्ति के सम्बंध में भी समुचित साधन वाला व्यक्ति ही उदार बन सकता है। उदारता के सद्गुण का तात्पर्य है, बिना अपव्यय किए योग्य विषयों पर मुक्त हस्त (खले दिल से) व्यय करना या दान देना। यद्यपि इसमें सभी प्रकार के असम्मानजनक साधनों से धन प्राप्ति को वर्जित माना गया है, किंतु ज्ञान एवं वैभव का यह भव्य गुण केवल अधिक सम्पत्ति और उच्च सामाजिक सम्मान वाले व्यक्ति के लिए ही प्राप्तव्य है। उनके लिए यह आवश्यक है कि वे देवताओं को वही भेंट चढ़ाएं, शानदार (भव्य) दावतें दें, अच्छी संगीत मण्डली रखें अथवा युद्ध-पोत से सज्जित रहें। नियम या परम्परा के इन व्यय साध्य कार्यों को करना ऐथेन्स में एक अन्यत्र सम्पत्तिशाली नागरिकों पर लगाया गया एक प्रकार का अतिरिक्त कर भार था, किंतु यह स्पष्ट है कि वे इन्हें दिखावे के अवसर होने के कारण उत्साहपूर्वक अपनाते थे। यह कि व्यावहारिक जीवन में सम्पत्तिशाली व्यक्ति को शादी की दावतों में तथा मनोरंजन करने वाले समूह गायकों को रंगीन वस्त्रों से सजाने में अतिरंजित अभद्रता से बचना होता था। इसी प्रकार मनुष्य का सम्मान या यश कीर्ति के लिए उचित प्रयत्न भी अरस्तू के द्वारा विशिष्ट सद्गुण का क्षेत्र माना गया है, यद्यपि उसे इसके लिए तत्कालीन नैतिकता के शब्दकोष में कोई शब्द नहीं मिला है। जैसे कि देखा जाता है वह महत्वाकांक्षी व्यक्ति और अमहत्वाकांक्षी व्यक्ति - दोनों को ही कभी प्रशंसा के पात्र और कभी निंदा के पात्र मानता है, किंतु उच्चमना व्यक्ति के द्वारा अभिव्यक्त बाह्य शुभों में मन की इस सर्वोत्तम अभिवृत्ति (रुझान) का चित्रण करने में विशेष रुचि रखता है। उच्चमना व्यक्ति वह है, जो उच्चकोटि के गुण धारण करता है तथा अपनी योग्यता के अनुसार अपना मूल्यांकन करता है। उच्चमना होने का यह गुण सम्पादित सद्गुणों का ताज (मुकुट) है, क्योंकि दूसरे सद्गुण इसमें अंतर्निहित होते ही हैं या दूसरे सद्गुणों का इसमें
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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