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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 31 स्वतंत्रता का विरोधी होगा, किंतु इसके विपरीत सुकरात की मान्यता में मात्र ज्ञान ही मनुष्य को स्वतंत्र बना सकता है। उनकी मान्यता यह है कि सदाचरण ही वस्तुतः ऐच्छिक है। एक दुराचारी तो अपने अज्ञान के कारण वह करने को बाध्य होता है, जो उसकी वास्तविक इच्छा का विरोधी है, जबकि उसकी वास्तविक इच्छा ही उसके लिए सदैव ही सर्वोच्च शुभ है। मात्र ज्ञान ही व्यक्ति को अपनी वास्तविक इच्छा को पूर्ण करने के लिए स्वतंत्र बना सकता है। यद्यपि सुकरात और सोफिस्ट विचारकों में विरोध है, फिर भी उस आधार भूत धारणा के सम्बंध में, जिस पर सोफिस्टों के नवीन दावे आधारित थे, सुकरात की उनसे सारभूत एकता परिलक्षित होती है। उनकी धारणा यह है कि मनुष्य के लिए जीवन जीने की समुचित पद्धति की प्राप्ति ज्ञान पर निर्भर है। सम्यक्रूपेण योग्य बुद्धि पर्याप्त प्रशिक्षण के द्वारा ही जीवन जीने की सच्ची कला को जाना जा सकता है। यह मूलभूत धारणा सुकरात के बाद के सभी सम्प्रदायों के विकास में और उनकी विभिन्नताओं में यथावत् बनी रही। सुकरात के बाद ग्रीक दर्शन सदैव ही जीवन की सच्ची कला प्रकट करने का महत्वपूर्ण दावा प्रस्तुत करता रहा। यद्यपि भिन्न भिन्न सम्प्रदायों ने उसके क्षेत्र और पद्धतियों को अलग-अलग ढंग से परिभाषित किया, तथापि हमेशा यह माना जाता रहा कि ज्ञान के द्वारा ही अच्छा जीवन जीया जा सकता है। इसके साथ ही अपने शिष्य प्लेटो के समान ही सुकरात राजनीति के क्षेत्र में भी ज्ञान की सर्वोपरिता को किसी प्रकार कम नहीं आंकते हैं। वे कहते हैं कि सच्चा सेनापति वह है, जो सैन्य संगठन की कला को जानता है, फिर चाहे वह सेनापति चुना जाए या नहीं। सभी लोगों के मतपत्र किसी अज्ञानी व्यक्ति को सेनापति के पद के योग्य नहीं बना सकते हैं। यह वस्तुतः प्लेटो की आदर्शवादी कल्पना की विशेष उड़ान नहीं थी, जिसमें उसने अपने आदर्श राज्य का पूर्ण नियंत्रण दार्शनिकों के हाथों में सौंपने की बात कही थी, अपितु यह तो उसके गुरु सुकरात के मुख्य सिद्धांत का सीधा क्रियान्वयन था, कि जो मनुष्य वास्तविक साध्य या शुभ का ज्ञान नहीं रखता है, वह अन्य मनुष्यों पर शासन करने के योग्य नहीं है। यदि हम सद्गुण के ज्ञान को हित से भिन्न मानेंगे, तो फिर हमारा सुकरात द्वारा निदर्शित शुभ का ज्ञान भ्रांत होगा। उनके तर्क का बल सद्गुण और हित के प्रत्ययों की शुभ के अकेले प्रत्यय के साथ अवियोज्य एकात्मता में है। स्वयं सुकरात ने भी इनकी इस एकात्मता की खोज नहीं की थी, अपितु उसने भी सोफिस्टो के
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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