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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/294 मानव-जीवन का यह आदर्श मात्र विभिन्न शुभों की सन्निधि (निकटता) नहीं है, अपितु, एक ऐसी पूर्ण इकाई है, जिसमें प्रत्येक शुभ दूसरे शुभों की उपस्थिति के कारण अपनी अलग से सत्ता रखता है, फिर भी कार्य के विभिन्न विकल्पों की उपस्थिति में नैतिक निर्णयन की वास्तविक-प्रक्रिया की समीक्षा यह बताती है कि विशेष शुभों एवं अशुभों तथा उनके पारस्परिक-सम्बंधों पर तुलना और विभेदीकरण पद्धतियों के द्वारा अवश्य ही विचार करना चाहिए। कार्य के विभिन्न विकल्पों के पूर्व अनुमानित संभाव्य परिणामों पर किसी विशेष संदर्भ में विस्तारपूर्वक सामान्य तुलना की जाना चाहिए और उन विकल्पों के सापेक्षिक-दावों का मूल्यांकन होना चाहिए। वास्तव में ऐसा करने पर हमें यह विदित होगा कि किसी रूप में सभी मूल्य आनुपातिक हैं और उनके महत्त्व का मूल्यांकन एक-दूसरे के संदर्भ में ही किया जाना चाहिए। क्या ऐसी प्रक्रिया में तुलना और मूल्यांकन का कोई सिद्धांत निहित है? और यदि वह है, तो क्या है? रशडाल की दृष्टि में स्पष्ट रूप से ऐसा कोई एक सिद्धांत नहीं है। सामान्य लोककल्याण के विचार के आधार पर ही ऐसा कोई मूल्यांकन हो सकता है और यह मूल्यांकन भी प्रमुख आदर्शों या जीवन-पद्धति और मूल्यांकन करने वाले व्यक्ति के चरित्र से प्रभावित होगा। उसका सम्बंध उससे भी होगा, जिसे जान स्टुअर्ट मेकेंजी ने इच्छा का विश्व कहा है। जिन इच्छाओं में से चयन किया जाता है, वे अक्सर आंशिक-रूप से वर्गाच्छादन करती हैं।
निश्चय ही, वैयक्तिक-शुभ और दूसरे लोगों के शुभ में कोई असंगति हो सकती है, लेकिन अनुभवात्मक-प्रमाण के आधार पर सामान्य-शुभ के प्रत्यय का सम्यक् प्रकार से अभ्युपगम नहीं किया जा सकता है, जबकि ग्रीन और दूसरे लोगों ने इस आधार पर माना था कि जो एक के लिए शुभ है, उसका दूसरे लोगों के शुभ के साथ भी सदैव ही तादात्म्य होगा। वास्तविक नैतिकता कुछ ऐसे स्वयंसिद्ध सिद्धांतों की अपेक्षा करती है, जो एक प्रभावशील एवं वस्तुतः सर्वश्रेष्ठ स्थिति होने का दावा कर सकें। स्वयंसिद्ध सिद्धांत विवेक, परोपकार और समानता हैं। यह बात मेरे लिए स्वतःसिद्ध प्रमाण है कि मुझे अपने अधिकतम शुभ की अभिवृद्धि करने का प्रयत्न करना चाहिए (जहां तक कि वह शुभ दूसरों के अधिकतम शुभ से नहीं टकराता है), कुल मिलाकर मुझे कम की अपेक्षा अधिक शुभ को प्राथमिकता देना चाहिए
और एक व्यक्ति के शुभ को दूसरे व्यक्ति के उसी प्रकार के शुभ के समान ही आंतरिकमूल्य वाला मानना चाहिए। नैतिक-जीवन एक मूल्यों के प्रत्यक्ष-बोध की अपेक्षा