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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/285 अपने मुख्य लक्षणों की दृष्टि से ब्रिटिश-नीतिशास्त्र के धार्मिक-पृष्ठभूमि लिए हुए परम्परागत रूपों के अधिक निकट था। उसने उस मनोवैज्ञानिक-सिद्धांत को निरस्त कर दिया, जो कि सिजविक को सुख की आचरण का साध्य मानने की दिशा में ले गया था। अंतरात्मा के घटकों का प्रयास होने के कारण उसकी अपनी पद्धति भी मुख्यतया मनोवैज्ञानिक ही थी। वस्तुतः, उसके इस सिद्धांत के उपयोग में उस शिकायत को लेकर, जो सिजविक ने की थी, कुछ औचित्य भी है। वह शिकायत यह थी कि उसने उन-उन बातों को मान लिया, जिसे उसकी अपनी नैतिक-चेतना ने स्वयं अपने बारे में कहा था और उसने यह भी मान लिया कि ये सभी लोगों के लिए सत्य होगी। मार्टिन्यू नैतिक-शक्ति के स्रोत की खोज करते हुए इसे व्यक्तित्व से भिन्न अन्य किसी तथ्य में स्वीकार नहीं कर सके। कर्त्तव्य का प्रत्यय हम पर बंधनकारक है, लेकिन हम किसी भी ऐसी वस्तु को हमारे लिए बंधनकारक (आबंधात्मक) स्वीकार नहीं कर सकते. जो कि हम से उच्च नहीं हो, इसलिए नैतिक-आबंध कास्रोत एक ऐसे व्यक्तित्व में होना चाहिए, जो हमसे उच्च हो और केवल वैयक्तिक-ईश्वर ही इस अपेक्षा को पूर्ण कर सकता है। प्रत्यक्ष की दृष्टि से वह ईश्वर आत्मा और प्रकृति है, नैतिकता की दृष्टि से वह आत्मा और ईश्वर है, जो कि हमारे समक्ष उपस्थित है। सिजविक ने इस बात पर आपत्ति की थी कि यदि मार्टिन्यू इससे इंकार नहीं करते हैं कि अनिश्वरवादीगणितज्ञों के लिए मात्रात्मक-सम्बंधों के प्रसंग में बुद्धि की प्रामाणिकता सत्य है, तो वह संगतिपूर्ण रूप से यह मानने को भी बाध्य है कि एक अनिश्वरवादी-नीतिवेत्ता के लिए औचित्य के संदर्भ में अंतरात्मा की प्रामाणिकता भी उसी प्रकार सत्य हो सकती है तथा नैतिकता के लिए ईश्वरवादी-दृष्टिकोण को अनिवार्य तथा लागू नहीं किया जा सकता। मार्टिन्यू ने इस बात पर भी बल दिया है कि एक सच्चा नैतिक-निर्णय एकान्तिक-रूप से कर्म के बाह्य-परिणामों पर न होकर उस कर्म के आंतरिक-स्रोत अर्थात् प्रेरक पर होता है। निर्णय दो प्रकार के होते हैं - 1. वैधिक, जो चाहिए, औचित्य और कर्तव्यों के प्रत्ययों का उपयोग करते हैं और दूसरे 2.सौंदयात्मक, जो शुभ और अशुभ के पदों का उपयोग करते हैं। उसके अनुसार, निर्णयों का यह दूसरा वर्ग सामान्यतया नैतिकता से रहित है। उसके अनुसार, हमारे चयन का स्रोत सदैव ही कोई विशेष प्रेरणा या वासना होती है, जो कि चयन को सुझाती है। यह दृष्टिकोण उसे कर्मों के वांछित परिणामों की सार्थकता को भुला देने या कम महत्त्वपूर्ण समझने की
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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