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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/218 ईश्वरीय योजना के आधार पर करता है। दूसरे प्रसंगों में, उसके उपयोगितावादी विचार अस्त-व्यस्त हैं एवं पद्धति-विहीन हैं और अपेक्षाकृत घिसे-पिटे विषयों पर निबंध उपदेशों के रूप में विकृति की ओर अग्रसर होते हैं। बेंथम और उसका सम्प्रदाय (1748 से 1845) अपनी पद्धतिगत विशिष्टता तथा (सैद्धांतिक) एकता एवं संगतिपूर्णता में बेंथम का उपयोगितावाद निश्चित ही पेले के उपयोगितावाद से श्रेष्ठ है। वह सदैव ही कार्यों को उनके वास्तविक अथवा संभावित परिणामों की सुखदता या दुःखदता के संदर्भ में ही देखता है। वह इन परिणामों की ऐसी व्यापक और व्यवस्थित सूची बनाने की आवश्यकता को पूरी तरह स्वीकार करता है, जो जन-साधारण की प्रशंसा एवं निंदा के रूप में अभिव्यक्त नैतिक-मतों के प्रभावों से पूर्णतया मुक्त हो, साथ ही, जिनके आधार पर वह चरित्र का मूल्यांकन करता है, उन परिणामों को केवल अनुभवात्मक-रूप में ही जाना जा सकता है, क्योंकि जिनका अधिकांश व्यक्ति अनुभव करते हैं, ऐसे सुखों एवं दुःखों की अनुभूति को सभी देख सकते हैं। बेंथम जिस पद्धति के आधार पर सभी राजनीतिक और नैतिक निष्कर्षों को प्राप्त करता है, वे प्रत्येक स्थिति में व्यावहारिक- अनुभव के परीक्षण के विषय हैं। बेंथम यह मानता है कि प्रत्येक व्यक्ति यह कह सकता है कि उसके लिए भरण-पोषण, काम-वासना, सामान्य इंद्रियों, सम्पत्ति, सत्ता, जिज्ञासा के सुख इनके अभाव के दुःख का क्या सहानुभूति-मूल्य है। इसी प्रकार, व्यक्ति या समाज की सद्भावनाओं के सुखों और उनकी विरोधी दुर्भावनाओं के दुःखों एवं इसके साथ ही साथ श्रम और शारीरिक रोगों के दुःखों का क्या मूल्य है? वह बहुत ही अच्छी तरह से उस मूल्य का भी अनुमान कर सकता है, जिस रूप में दूसरे व्यक्ति उनका मूल्यांकन किस प्रकार करते हैं, इसलिए यदि एक बार यह मान लिया जाए कि सभी कार्य सुखों या दुःखों से निर्धारित होते हैं और उसी प्रमापक (कसौटी) के आधार पर उसका मूल्यांकन किया जाता है, तो वैयक्तिक आचरण और वैधानिक आचरण- दोनों की कला को स्पष्ट रूप से एक व्यापक, सरल और सुस्पष्ट अनुभवात्मक-आधार पर सुलझाया जा सकता है। यदि हम किसी एक कार्य की अच्छाई या बुराई की खोज करना चाहते हैं, तो हम उनमें से किसी भी एक व्यक्ति से उस खोज को प्रारंभ कर सकते हैं, जिसके हित प्रत्यक्ष रूप से उस कर्म से प्रभावित होते हैं और उस कर्म के परिणामस्वरूप उस व्यक्ति में उत्पन्न होने वाले इंद्रिय-गोचर प्रत्येक सुख या दुःख अनुभव के आधार पर
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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