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________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/186 आचरण का निर्धारण करती है। नैतिक कर्तव्य अपनी परिस्थितियों के आधार पर उत्पन्न होते हैं और नैतिक नियम वे नियम हैं जिनमें बुद्धि परिलक्षित होती है। इसीलिए दुर्गुण वस्तुओं की प्रकृति और वस्तु-विवेक के विरोधी है। यह कार्य उस अर्थ से बिलकुल भिन्न है कि दुर्गुण अपने स्वयं की प्रकृति का उल्लंघन या विनाश करता है, तथापि वह नैतिक नियमों की इस संदर्भित निरपेक्ष युक्ति-युक्तता को सिद्ध करने के लिए कोई प्रयास नहीं करता है। उसकी पद्धति मनोवैज्ञानिक चिंतन के द्वारा अंतर्विवेक के आदेशों को जान लेना है, न कि इन आदेशों की सहज बोधता या नैतिक स्वयंसिद्धता को दिखाना है। अंततोगत्वा उसकी यह पद्धति उसे नैतिक संकाय के निर्देशों और मात्र सामान्य सुख के प्रेरक विचार और प्राप्त निष्कर्षों के बीच एक विवेक के तत्त्व को स्वीकार करवा देती है। यहां हमने अंततोगत्वा शब्द का प्रयोग किया है। क्योंकि यह जान लेना रुचिकर होगा कि बटलर के नैतिक विचारों के विकास में सहजज्ञानवादी और उपयोगितावादी नैतिकता का वह विरोध क्रमशः स्पष्ट हो जाता है, जिसने तत्कालीन नैतिकता सम्बंधी वाद-विवादों में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया था। हमें ध्यान रखना होगा कि प्रारम्भिक लेखकों में यह विरोध पूर्णतया अव्यक्त ही है। क्लार्क कम्बरलैण्ड के साथ पूर्णतया सहमत है। शेफ्टस्बरी भी यह मानता है कि नैतिक इंद्रिय सामान्य अवस्था में शुभ या प्रजाति के सुख में सहायक कार्यों को तत्काल स्वीकार कर लेती है। पूर्व उद्धृत बटलर के नौवें सरमन में भी अंतर्विवेक और परोपकारिता के बीच के व्यावहारिक विभेद की उपेक्षा ही की गई है, यद्यपि उसके बारहवें सरमन में प्रारम्भिक रूप में इसका संकेत किया गया है, किंतु सरमन्स के दस वर्ष बाद 1736 में प्रकाशित एक ग्रंथ के साथ संलग्न सद्गुण सम्बंधी निबंध में इसे व्यक्त रूप से और बलपूर्वक स्पष्ट किया गया है। यहां यह स्वीकार करता है कि परोपकार या परोपकार की अनुपस्थिति पर एकाकी दृष्टि से विचार किया जाए, तो वह किसी भी रूप में सद्गुण और दुर्गुण का समग्र नहीं है। क्योंकि हम असत्य, हिंसा और अनुसंचित हिंसा की निंदा करने तथा दूसरों के प्रति किए गए परोपकार की प्रशंसा के करने में इस बात का विचार नहीं करते हैं कि कौनसा आचरण सुख या दुःख के संतुलन को उत्पन्न करने में सक्षम है। यहां तक वह एक भ्रांति के रूप में ऐसा विरोधी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जिससे अधिक खतरनाक अन्य कुछ नहीं हो सकता, क्योंकि यह निश्चित है कि अन्याय, व्यभिचार, हत्या, प्रवंचना और यहां तक कि अत्याचार की दिल दहलाने वाली कुछ घटनाएं भी अनेक संभावित
SR No.032622
Book TitleNitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHenri Sizvik
PublisherPrachya Vidyapeeth
Publication Year2017
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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