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नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा / 135 सिद्धांतों के अध्ययन का पुनः प्रारम्भ अरब और यहूदी टीकाकारों के प्रभाव एवं उनके ग्रंथों के कारण हुआ। अरस्तवी और ईसाई विचारों का महत्वपूर्ण संयोजन 13 वीं शताब्दी में हुआ और जिसने एक लम्बे समय तक कैथोलिक सम्प्रदाय के शास्त्रीयदर्शन पर अपना नियंत्रण रखा। इसका प्रारम्भ अल्बर्टमहन के द्वारा हुआ और थामस एक्कीना ने इसे पूर्णता पर पहुंचाया ।
थामस एक्कीनास (1225 - 1274 ई.)
थामस एक्कीनास का नैतिक-दर्शन मुख्यतः नवप्लेटोवाद से प्रभावित अरस्तूवाद है, जिसे मुख्य रूप से आगस्टिन के ईसाई सिद्धांतों के आधार पर संवर्द्धित एवं विवेचित किया गया है। वह मानता है कि सभी बौद्धिक और अबौद्धिक वस्तुओं की गतियां या क्रियाएं किसी साध्य या शुभ की ओर उन्मुख होती हैं, जो कि बौद्धिक प्राणियों के संदर्भ में ये क्रियाएं विचार के रूप में परिलक्षित होती हैं, ये अभिप्राय के द्वारा निश्चित होती हैं तथा व्यावहारिक बुद्धि के प्रभाव के द्वारा संकल्प के रूप में उनकी इच्छा की जाती है। वस्तुतः वांछित साध्य अनेक होते हैं, जैसे - सम्पत्ति, सम्मान, शक्ति, सुख आदि, किंतु इनमें से कोई भी न तो संतोष दे पाता है और न सुख ही वह तो केवल परमात्मा स्वयं ही दे सकता है, जो कि सभी प्राणियों का आधार एवं प्रथम कारण है और सभी परिवर्तनों का अपरिवर्तित सिद्धांत है, इसलिए वह तत्त्व ईश्वर है, जिसकी ओर सभी वस्तुएं वस्तुतः अचेतन रूप से अपनी शुभ की साधना के द्वारा प्रयासशील है, किंतु ईश्वर के प्रति यह सार्वलौकिक प्रयास वस्तुतः बुद्धिगम्य है, अतः यह बुद्धिमान् प्राणियों में, उस ईश्वर के ज्ञान की जिज्ञासा में ही, अपने सर्वोच्च रूप में अभिव्यक्त होता है, यद्यपि ऐसा ज्ञान बुद्धि के सामान्य क्रिया-कलापों से परे है और मनुष्य में केवल आंशिक रूप से ही प्रकट हो सकता है। इस प्रकार मनुष्य का सर्वोच्च शुभ वस्तुनिष्ठ रूप में ईश्वर है और आत्मनिष्ठ रूप में उस पूर्ण प्रभु की प्रेममय दृष्टि से प्राप्त आनंद है, यद्यपि दूसरे निम्न प्रकार के सुख भी है, जिनकी उपलब्धि लौकिक जीवन की आवश्यकताओं के सम्बंध में सम्यक् प्रकार से पूरी तरह प्रशिक्षित स्वस्थ मन और स्वस्थ तन के द्वारा सद्गुण और मैत्री के सामान्य -जीवन में होती है। उच्च प्रकार का आनंद तो ईश्वर की मुक्त कृपा से उपलब्ध होता है, किंतु यह उन्हें ही उपलब्ध होता है, जिनका हृदय पवित्र है और जिन्होंने अनेकों सत्कार्यों के द्वारा अपने को उस योग्य बना लिया है। कौन-सा कार्य सत्कार्य होगा इस सम्बंध में विचार करते समय हमें यह ध्यान रखना होगा कि किसी कर्म की
मानव