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जीने की कला है। स्वयं सुख से जीने की तथा औरों को सुख से जीने देने की। सभी सुखपूर्वक जीना चाहते हैं, दुखों से मुक्त रहना चाहते हैं। परंतु जब हम यह नहीं जानते कि वास्तविक सुख क्या है और यह भी नहीं जानते कि उसे कैसे प्राप्त किया जाए तो झूठे सुख के पीछे बावले होकर दौड़ लगाते हैं। वास्तविक सुख से दूर रह कर अधिकाधिक दुखी होते हैं। स्वयं को ही नहीं औरों को भी दुखी बनाते हैं। वास्तविक सुख आंतरिक शांति में है और आंतरिक शांति चित्त की विकार-विहीनता में है, चित्त की निर्मलता में है। चित्त की विकार-विहीन अवस्था ही वास्तविक सुख-शांति की अवस्था है।
बौद्ध धर्म इस आत्मचिन्तन का धर्म है इस धर्म का सारांश एक प्रकार की आत्मोन्नति और आत्म-निरोध है। इस मत में सिद्धान्त और विश्वास गोण है। मोक्ष और कामनाओं से रहित पवित्र-जीवन निर्वाह करने से मनुष्यों के दुखों के दूर होने की संभावना है। यह दुखवाद ही बौद्ध सिद्धान्त है। बौद्ध दर्शन में श्रमण धर्म व गृहस्थ धर्म के अलग-अलग सिद्धान्त मिलते है। इतना ही नहीं सामाजिक, राजनैतिक धर्म की व्याख्या भी हमें बौद्ध त्रिपटकों में देखने को मिलती है। जिसकी विस्तार से चर्चा लेख में की जावेगी।
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सारनाथ में स्थित बौद्ध स्तूपों का बौद्ध धर्म में महत्व
सूरज प्रसाद यादव, दिल्ली
सारनाथ को बौद्ध धर्म में अत्यंत विशेष स्थान प्राप्त है, यही वह पवित्र स्थान है जहाँ तथागत बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्ति के पश्चात पहली बार पंचवर्गीय भिक्षुओं को प्रथम उपदेश दिया जिसमें चार आर्य सत्य और आर्य अष्टांगिक मार्ग सम्मिलित है इसी को धम्म चक्क पवत्तन के नाम से जाना जाता है इसी घटना के परिणामस्वरूप सारनाथ को बौद्ध धर्म के पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है। ___ बौद्ध धर्म के क्रमिक विकास में सारनाथ ऋषि पतन मृगदाव का एक प्रमुख स्थान रहा है तथागत बुद्ध ने बोधगया में निरंजना नदी के किनारे बोधि प्राप्ति