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आदि पालि गायों में सांसारिक जीवन की निःसारता बतलाती हुई वैराग्य जीवन की महत्ता के गीत एवं वर्णन किये गये है। उपनिषद की दार्शनिक विचारधारा में वर्णन किया गया है कि मोक्ष की प्राप्ति ही जीवन का परम लक्ष्य है जिसके फलस्वरूप वृद्ध-युवा, स्त्री-पुरुष राजा और रंक सभी बडी संख्या में प्रभावित होकर प्रवजित होने लगे और अरण्य में तापस अपने आधार्यों के साथ बडे बडे समूह में रहने लगे। ब्राह्मण, बौद्ध, जैन, आजीवक, अचेल, जटिल आदि मतं समानरूप से सांसारिक जीवन से वैराग्य के महत्व को स्वीकार किया है। पालि पिटक में तापसों के लिये परिव्राजक, भिक्षु, श्रवण, यति, सन्यासी आदि शब्द मिलते है निकार्यों में प्रायः परिव्राजक शब्द प्रयुक्त हुआ है। __ ब्राहमणधर्माम्बली में तापस को दो वर्ग में बाटा गया है। प्रथम वर्ग वानप्रस्थियों तथा सन्यासियों का तथा दूसरा परिव्राजक का था। वे जीवन के प्रति अपने दार्शनिक दृष्टिकोण के अनुरूप तप को अपनाते थे। इस प्रकार बौद्ध ब्राह्मण -धर्म की सामान्य व्यवस्थ में लगभग आधे से अधिक समाज के लिय संसार से विरत होकर सत्य की जिज्ञासा में ज्ञानियों के पथ-प्रदर्शन में, भी या तपस्वी का जीवन व्यतीत करना विधिवत् थे।
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व्यक्तित्व निर्माण में पंचशील एवं पंच महाव्रत की महत्ताः एक अवलोकन
सुरेश कुमार, दिल्ली
भारतीय जीवन शैली एवं शिष्टाचारिक परम्परा में व्यक्तित्व निर्माण पर अधिक बल दिया गया, सिर्फ अध्यात्मिक या धार्मिक स्तर पर ही नहीं अपितु समाज अथवा देश की प्रगाति में भी व्यक्तित्व निर्माण पर बल दिया गया है क्योंकि यह सर्व विदित है कि जिस भी वंश, सम्प्रदाय, समूह, समाज, अथवा देश के नागरिक जितने अधिक सदाचारी, एक-दूसरे के प्रति मैत्रि भाव रखने