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________________ उन लोगोंने उन चौरोंको मार देते कौशिकको पाप लगा । कौशिकने सत्य देखा जरूर, परंतु भाविमें होनेवाले खतरेको दूर न किया । भगवान कभी ऐसा नहीं करते । ये सर्व धर्म प्राणीओंको सुखकारी, कल्याणकारी एवं मंगलकारी हैं । किसी जीव को तकलीफ हों ऐसी वाणी साधक कैसे निकाल सकता हैं ? भगवान स्वयं आचरण कर हम सबको ऐसा समझा रहे हैं । जिनागम और दूसरे शास्त्रों में यह बड़ा अंतर हैं । यथार्थ दर्शन और भाविमें हितकर प्ररूपणा मात्र जिनागमों में ही देखने मिलेगी। प्रश्न : हित और योग-क्षेममें क्या अंतर हैं ? उत्तर : हित और योग-क्षेममें अंतर हैं । योगक्षेम बीजाधानवालोंका ही होता हैं । हित सबका होता हैं। भगवान सबको हितकर सम्यक्त्व के लक्षण शम : उदयमें आये हुए या आनेवाले क्रोधादि कषायों को शांत करने की भावना रखकर, समता रखनी । संवेग : इच्छा हैं बल्कि मात्र मोक्ष प्राप्ति की। निर्वेद : संसारी जीव की प्रवृत्ति हैं, परंतु संसार के पदार्थों में आसक्ति नहीं हैं । अनुकंपा : जगत के सर्व' जीवों को स्व-समान मानकर सबके प्रति वात्सल्यभाव, करुणाभाव । आस्तिकता : श्रद्धा, जिनेश्वर और उनके द्वारा बोधित धर्ममें अपूर्व श्रद्धा । (कहे कलापूर्णसूरि - ४Boo00000000000000000६३)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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