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प्रेम हैं ? क्योंकि जानते हैं तप के बिना कर्म-क्षय नहीं होता ।
कर्म-क्षय के बिना मोक्ष मिलेगा ? लड्ड खाते-खाते मोक्ष मिल जायेगा ? मझे नहीं लगता : मोक्ष की इच्छा जगी हइ हो। मोक्षमें जाना हों तो कटिबद्ध होना पड़ेगा । 'देहं पातयामि कार्य वा साधयामि ।' मोत को मूठी में रखकर नीकलना पड़ता हैं । तो तप होता हैं, कर्म-क्षय होता हैं ।
* अपुनर्बंधकमें हमारा नंबर हैं या नहीं वह जानना हैं ? बीजाधान हुआ हैं या नहीं, वह जानना हैं ? बीजाधान के बिना भगवान की तरफसे योग-क्षेम होनेवाला नहीं हैं । अतः स्वाभाविक हैं कि हमारे अंदर बीजाधान हुआ हैं कि नहीं वह जानने की इच्छा जगे। अपुनर्बंधकता के बाद क्षयोपशम भावके गुण बढते रहते हैं ।
पूज्य हेमचंद्रसागरसूरिजी : क्षयोपशम भावका अप-डाउन हुआ नहीं करता ?
पूज्यश्री : नहीं, क्षयोपशमभावकी नित्य वृद्धि होनी चाहिए । आगे-पीछे जाता रहे तो मुसाफिर मंझिल तक कैसे पहुंचेगा ? मुंबई से यहां आप कैसे आये ? थोड़े आगे थोड़े पीछे चलते रहो तो पहुंच सकते हों ?
हमें मुक्तिनगरीमें पहुंचना हैं । पीछे हटेंगे तो कैसे पहंचेंगे ?
अपुनर्बंधक याने ऐसी आत्मा कि वह अब भवचक्रमें कभीभी मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थिति (७० कोड़ाकोड़ि सागरोपम) बांधनेवाली नहीं है ।
. इसने थोड़ीसी परमकी झलक प्राप्त की हैं वह अब विष्ठामें कैसे लेटेगा ? मिठाई खाई हो वह अब एंठा-जूठा कैसे खाएगा ? शायद भोजन करना पड़े तो भी मन कहां होगा ?
जाण्यो रे जेणे तुज गुण लेश, बीजा रे रस तेने मन नवि गमेजी,
चाख्यो रे जेणे अमी लवलेश, बाकस-बुकस तस न रुचे किमेजी !
- उपा. यशोविजयजी ये यशोविजयजीके उद्गार हैं, जो लघु-हरिभद्र कहे गये हैं। - अपुनर्बंधकमें विषयाभिलाषाकी विमुखता होती हैं, उसे संसार कहे कलापूर्णसूरि - ४ 00000000000000000 ६१)