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________________ गधे उठाये, लेकिन क्या सुगंध प्राप्त करते हैं ? हमें ज्ञानका भार उठानेवाले गधे बनना हैं ? दूसरी आत्मा भी मोक्षमें जाये, ऐसी भावना के लिए प्रयत्नशील बननेवाले हम स्वयं की ही (आत्मा की ) चिंता न करें ? संपूर्ण शरणागति लेनेके लिए आत्मा तैयार नहीं होती । यह तैयार न हो तब तक भगवान की तरफ से योग-क्षेम नहीं होता । मन-वचन-काया तीनों भगवानको सोंप दो तो भगवान आपकी आत्माको परमात्मा बनाने के लिए अभी तैयार हैं । परंतु हमारी तैयारी कहां हैं ? प्रीति - भक्ति आदि अनुष्ठानों में क्रमशः ज्यादा से ज्यादा अर्पण ही करते जाना हैं । आप योग-क्षेमके पात्र बने तो आपका मोक्ष नक्की ! मृत्यु से पहले इतना तो नक्की कर ही लेना । इतनी मेरी बात मानना । * मिथ्यात्व मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थिति ७० कोड़ा - कोड़ि सागरोपम हैं । ऐसी उत्कृष्ट स्थिति जो अब एक भी बार नहीं बांधनेवाला हो वह अपुनर्बंधक कहा जाता हैं । मिथ्यात्वकी उत्कटता हो वहां अनंतानुबंधीकी भी उत्कटता होती हैं। अंतर्मुहूर्त में ७० कोड़ाकोड़ि सागरोपम ( याने कि ३॥ कालचक्र) कर्मकी स्थिति बांध सकते हैं । सम्यक्त्व रोकनेवाला यह दर्शन मोहनीय ही हैं। इसे सर्वप्रथम पराजित करना पड़ेगा । इसके लिए कदम-कदम पर 'नमो अरिहंताणं' जपते जाओ । मोह के सामने यह मोरचा शुरु करना ही रहा । लोगस्स क्या हैं ? भगवानको नमस्कार हैं । नमस्कार, मोह के सामने प्रत्याक्रमण हैं । * दुर्योधन- रावण वगेरहने युद्ध करके जितने कर्म बांधे उससे भी ज्यादा कर्म देव - गुरुकी आशातनासे बांधते हैं । वह (युद्धादि करनेवाला) नरकमें जाता हैं, परंतु देव - गुरुकी आशातना करनेवाला तो निगोदमें जाता हैं । भक्ति कम हो तो भले हो, किंतु देव गुरुंकी आशातना तो कभी मत करना । ( कहे कलापूर्णसूरि ४ ०५९
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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