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________________ WRATIS HARASIMRODURAHARANAMAHARAS पू. जम्बूविजयजी के पास वाचना, धामा - गुजरात, वि.सं. २०३७ २५-९-२०००, सोमवार अश्विन कृष्णा - १२-१३ * प्रभु तो सभीके उपर उपकार करने के लिए तैयार हैं, परंतु सभी जीव इनके योग-क्षेम करनेकी शक्ति स्वीकार नहीं कर सकते । बरसात सब जगह पड़ता हैं, परंतु प्यास उसी की बुझती हैं, जो पानी पीता हैं। भगवान उनके ही नाथ बनते हैं, जो उनको नाथ के रूपमें स्वीकारते हैं । उसमें भगवानकी संकुचितता नहीं हैं । सूर्य उल्लूको मार्ग नहीं बता सकता इसमें सूर्यकी संकुचितता नहीं हैं। यैनैवाराधितो भावात्, तस्यासौ कुरुते शिवम् । सर्व जन्तु-समस्याऽस्य, न परात्मविभागिता ॥ - योगसार सर्व जंतुओ पर भगवान समान हैं । जो भाव से आराधना करता हैं उसका कल्याण करते ही हैं । यहां कोई मेरे-तेरे का विभाग नहीं हैं । संपूर्ण समर्पण की बात हैं । एकबार समर्पित हुए तो सभी जवाबदारी भगवान की हो जाती हैं । समर्पित शिष्य सांपको पकड़नेकी आज्ञा भी स्वीकारने के लिए ५४0moooooooooo0000000क
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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