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________________ * पूज्य हेमचन्द्रसागरसूरिजी : कोई आत्मा वैराग्य प्राप्त न करें उस समय उसका मित्रदेव यहां आकर नरकके दुःखोंको बताते हैं । अभी दृश्य कल्पित लगता हो, किंतु शास्त्रीय पदार्थका दर्पण हैं । - उमास्वातिजीने कहा हैं : महाआरंभ, महापरिग्रह नरकके कारण घरमें ऐसी सामग्री इकट्ठी कर रखी हैं जिसमें परदे के पीछे महारंभ-परिग्रह हो । T.V., फ्रीज, मोटर बगैरह कब चलते हैं ? उसके पीछे बड़े कतलखाने चलते हैं वह जानते हैं ? जिसकी मना की हैं उन कर्मादानों के पीछे आज जैन दौड़ रहे हैं । पू. आचार्यश्री उससे अटकाते हैं । मक्खी-मच्छर-खटमलकी औषधि वापरते हो तो आप जैन रह ही नहीं सकते ।। सभी प्रतिज्ञा ले लो । तीर्थंकर भगवंत की महिमा • तीर्थंकर भगवंत मुख्य रूप से कर्मक्षय के निमित्त हैं । • बोधिबीज की प्राप्ति के कारण हैं । • भवांतरमें भी बोधिबीज की प्राप्ति कराते हैं । • वे सर्वविरति धर्म के उपदेशक होने से पूजनीय हैं । • अनन्य गुणों के समूह के धारक हैं । • भव्यात्माओं के परम हितोपदेशक हैं । • राग, द्वेष, अज्ञान, मोह और मिथ्यात्व जैसे अंधकारमें से बचानेवाले हैं । • वे सर्वज्ञ, सर्वदर्शी और त्रैलोक्य प्रकाशक हैं । - (कहे कलापूर्णसूरि - ४0000000000000000000 ५३)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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