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________________ पसंदगी-नापसंदगी को बढाता रहे वह सच्चा ज्ञान नहीं हैं। सिर्फ दिखता हो वह मुक्ति हैं । दृश्योंमें खो जाना वह संसार हैं । * जिन-गुणदर्शनसे आत्म-गुणदर्शन, समवसरण ध्यान के समय देखेंगे । * मनके स्तर पर से मनको आज्ञा करो तो मन कहांसे मानेगा ? गुलाम गुलामका नहीं मानता, सेठका मानता हैं । मनसे उपर उठकर आत्माके स्तरसे आज्ञा करो तो मन क्यों न मानें ? * फ्रोइड महा मनोवैज्ञानिक : फ्रॉइड पत्नीके साथ एकबार बागके बेन्च पर बैठा था । पत्नी : बालक खो गया । कहां गया ? मन भी बालक हैं । माताको बालकका पता होता हैं । आपको ख्याल हैं ? फ्रोइड : तूने बालकको कहीं नहीं जाने के लिए कहा था? पत्नी : फव्वारे के पास जाने की मना कही थी । फ्रोइड : हां, तो बालक वहीं मिलेगा । सचमुच, बालक वहीं पर मिल गया । हमारा मन ऐसा हैं : जहां मना करो वहीं जाता हैं । देहमें मात्र रहना हैं, खोना नहीं हैं । तो ही देहाध्याससे दूर हो सकेंगे । साधना का प्रारंभ होगा । * प्रायोगिक ध्यान शुरु । सबसे पहले गुरु-अनुग्रह के लिए : गणि महोदयसागरजी : __चउव्विसंपि जिणवरा तित्थयरा मे पसीयंतु । करोडरज्जु टट्टार, आंखें बन्द, खुल्ली आंखोंमें परका प्रवेश होता हैं । श्वासकी शुभ्र दीवार पर कोई भी विचार का प्रतिबिंब पड़ेगा । ___ श्वास जड़-चेतन के बीच सूक्ष्म भेदरेखा हैं । लोगस्समें यह श्वास-साधना काम आयेगी । श्वास लो । रखो । छोडो । * 'बुद्धकी धारामें बह जाएगा तो तू ही खो जाएगा । उसके बाद प्रश्न कहां रहेंगे ? प्रश्न पूछने हो तो अभी (३० 80wwwwwwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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