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________________ મહોત્સવ સમા पद प्रदान प्रसंग, वांकी - कच्छ, वि.सं. २०५६, माघ शु. ६ २१-९-२०००, गुरुवार अश्विन कृष्णा - ८ गिरिविहार धर्मशाला * साधना-शिबिर प्रारंभ : आशीर्वाद + निश्रा : पूज्य आचार्यश्री विजय कलापूर्णसूरिजी संचालन : पूज्य यशोविजयसूरिजी पूज्य कलापूर्णसूरिजी : * विश्व के प्रत्येक जीव के मंगल के लिए भगवानने वै. सुदि ११ के दिन तीर्थ की स्थापना की, जिसे २५५६ साल हुए । इस शासनको आत्मसात् कर उसका अमृत पीनेवाले आचार्य भगवंतोंने यह शासन यहां तक पहुंचाया हैं । कितना उपकार भगवानका ? २१ हजार वर्ष तक तीर्थ किनके भरोसे पर? भगवान मोक्षमें गये, किंतु परोपकारसे अटके नहीं हैं । जीवों से विरक्त नहीं बने हैं । भगवानमें वीतरागता हैं, वैसे वात्सल्य भी हैं । परस्पर विरुद्ध धर्म भी भगवानमें हैं । वस्तुका स्वभाव अनंतधर्मात्मक हैं । वही प्रमाणभूत माना जाता हैं । (२२ 00000000000oomo कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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