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________________ सूरि-पद-प्रदान का बड़ा प्रसंग निहारने मानव-मेदनी उमड़ पड़ी । _ वि.सं. २०२९, मृग. शु. ३ के पवित्र प्रभात के समय पूज्य आचार्यश्री विजयदेवेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा.ने पंन्यासजी म. को आचार्य पद पर आरूढ किये ।। 'नूतन आचार्यश्री विजय कलापूर्णसूरि महाराज की जय' के गगनभेदी नादों से तीर्थ का पवित्र वातावरण गूंज उठा ।। अपने हाथों अपने एक सुयोग्य उत्तराधिकारी को सूरि-पदप्रदान करने की मनोभावना आज के शुभ-दिन परिपूर्ण होते वयोवृद्ध आचार्यश्री को अपूर्व आत्मसंतोष हुआ । पूज्य देवेन्द्रसूरिजी म. का स्वर्ग-गमन : पद-प्रदान कार्य पूर्ण कर पूज्य आचार्यश्री फिर लाकडीया गांवमें पधारे । दो महिने जितनी स्थिरता की । चैत्री-ओली के लिए आधोई पधारे । चैत्री ओली के मंगलदिन नजदीक आ रहे थे। पूज्यश्री की अस्वस्थ तबीयत के समाचार मिलते ही नूतन आचार्यश्री विजयकलापूर्णसूरिजी म. जो पूज्यश्री की आज्ञा से दीक्षा आदि प्रसंगों के लिए शंखेश्वर-राधनपुर की तरफ पधारे हुए थे । वे वहा के संघोंकी ओली के लिए बहुत ही विनंती होने पर भी बिना रुके तुरंत ही पूज्यश्री की सेवामें आधोई उपस्थित हुए । ओलीकी मंगलमयी आराधना का प्रारंभ हुआ और चैत्र शुक्ला १४ का दिन आ पहुंचा । प्रत्येक चौदस उपवास करने की उन वयोवृद्ध पू. आचार्यश्री को प्रतिज्ञा थी। तबीयत अत्यंत गंभीर होने से उपवास न करने की सकल संघकी अत्यंत विनंती होने पर भी वे स्वयं की प्रतिज्ञामें अडोल रहे... उपवास का तप किया । __ आज सुबहसे ही मुनिओं के मुंह से स्तवन, चउस्सरण पयन्ना इत्यादि का एकाग्र चित्त से श्रवण करते रहे । दोपहर के समय पू. कलापूर्णसूरिजी, पूज्यश्री को सुख-साता पूछने के लिए आये तब पांच-सात मिनिट उनके साथ आनंदपूर्वक कुछ बातें की । दोपहर पडिलेहण कर आसन पर बिराजमान थे और शाम को प्रायः पांच बजे पूज्यश्री के देहमें कंपन शुरु हुई । पासमें रहे हुए मुनि सावधान बने, नवकार मंत्रकी धून शुरु की । पू. कलापूर्णसूरिजी (कहे कलापूर्णसूरि - ४Wooooomnaaswwwwwwww ३७१)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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