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________________ ले आये और दीक्षा का शुभ प्रसंग जन्मभूमि फलोदीमें ही करने का निर्णय किया । दीक्षा के लिए पूज्य गुरुदेव को विनंति : वि.सं. २०१०, वैशाख शुक्ल १० का मंगलमुहूर्त लेकर मिश्रीमलजी फलोदी गये और दीक्षा का प्रसंग शानदार रूप से मनाने संघ के अग्रणीयों के साथ विचार-विनिमय कर आठ दिनके महोत्सव का आयोजन किया । दीक्षा देने के लिए पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजयकनकसूरीश्वरजी महाराज को विनंति करने संघ के मुख्य-मुख्य भाईयों के साथ मिश्रीमलजी गये लेकिन कच्छ से राजस्थानमें... इतने दूर पहुंचने की उनकी शक्यता नहीं होने के कारण सब निराश हो गये । गुरुदेव की पुण्य-निश्रा के बिना आनंद कैसे आयेगा ? अक्षयराजभाईने ये निराशापूर्ण समाचार सुने... लेकिन निराशा लानी अक्षयराज का स्वभाव नहीं था । वे तो आशाभरे हृदयसे निकले फिर से जोरदार विनंति करने... कैसे भी करके गुरुदेवश्री को फलोदी लाने ही हैं इस दृढ निश्चय के साथ कच्छ-भद्रेश्वर आये जहाँ पूज्य गुरुदेव बिराजमान थे । अक्षयराज अकेले ही आये थे । साथमें दूसरा कोई था नहीं । उन्होंने गुरुदेव को आग्रहभरी विनंति करते कहा : 'गुरुदेव ! आप को फलोदी आना ही पड़ेगा । मैंने आज से अट्ठम के पच्चक्खाण ले लिये हैं । जहाँ तक आप हां नहीं कहेंगे वहाँ तक मेरा पारणा नहीं होगा।' दीक्षार्थी अक्षयराजकी अंतरकी अपार भावना देखकर कृपालु गुरुदेवने एकबार तो कह दिया : 'हां... भले मैं आऊंगा ।' अतः अक्षयराज का मन-मयूर नाच उठा । प्रतिज्ञा पूरी हो चूकी हैं, ऐसा समझकर पारणा किया । परंतु बाद में चक्र बदल गये । आनंदजी पंडितजी आदि सुश्रावकोंने पूज्य आचार्यश्री को ऐसी नादुरस्त तबीयतमें इतने दूर न जाने की सलाह दी । हार्ट के दर्दमें दूर न जाना हितावह हैं - यह समझकर आचार्य भगवंतने भी उनकी बात मान ली और उन्होंने . अपने विद्वान् शिष्य मुनिप्रवरश्री कंचनविजयजी म. और उनके साथ (कहे कलापूर्णसूरि - ४005 06666666Goaa a® ३५७)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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