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अक्षयराज सपरिवार पूज्य गुरुदेव के पास :
चारित्र संपन्न अनेक आचार्य, मुनिगण हैं, उसमें वागड़ समुदाय के रूपमें सुप्रसिद्ध पूज्य दादाश्री जीतविजयजी म.सा. तथा उनके पट्टधर आचार्यदेव श्रीमद् विजयकनकसूरीश्वरजी म.सा. के साधु-साध्वी समुदाय की आचार - पालन की चुस्तता, तप, त्याग, विधि- आदर इत्यादि गुणों की बहुत ही प्रशंसा सुनने मिलती थी और साथमें फलोदी के ही ज्योतिर्विद् विद्वान् मुनिराज श्री कंचनविजयजी म. भी इसी समुदायमें दीक्षित बने थे । अतः उस समुदायमें ही दीक्षा लेने का श्वसुर - जमाइने निर्णय लिया और अक्षयराजभाई खुद के दोनों पुत्रों के साथ अहमदाबाद विद्याशालामें पूज्य संघस्थविर आचार्यश्री विजयसिद्धिसूरीश्वरजी म.सा. ( बापजी म.) की निश्रामें चातुर्मास बिराजमान पूज्य आचार्यदेव श्री विजयकनकसूरीश्वरजी म.सा. के पास चातुर्मास रहे और संयम - योग्य तालीम लेने के साथ अभ्यासमें आगे बढते रहे । (वि.सं. २००९) और रतनबहन भावनगरमें पू. सा. निर्मलाश्रीजी के पास अभ्यास करने के लिए थोड़ा समय रहे ।
महाभिनिष्क्रमण के लिए मंथन :
इस प्रकार अक्षयराजभाईने अपने दोनों पुत्रों और उनकी माताको पूज्य गुरुभगवंतों की निश्रामें रखकर दीक्षा के लिए योग्य प्रकार से तालीमपूर्वक संयम की रुचिवाले बनाये । सबकी भावना संयम ग्रहण करने की हुई उसके बाद श्वसुर मिश्रीमलभाई को समाचार भेजे कि हम चारों की दीक्षा की पूरी तैयारी हैं । आप भी जल्दी आओ तो दीक्षा का मुहूर्त बता सकें ।
अक्षयराजभाई के पत्रसे मिश्रीमलजीभाई का संयम के लिए उत्सुक मन तैयारी करनेमें तत्पर बना, किंतु कुछ संयोगों के कारण जल्दी निकल नहीं सकते थे । इस हकीकत को जानकर अक्षयराजभाईने पूज्य गुरुदेव के पास, दीक्षा न ले सकूं वहाँ तक छः विगइ के त्याग की प्रतिज्ञा ली । मिश्रीमलभाई को वह बात विदित की । अक्षयराजभाई की ऐसी दृढता और प्रतिज्ञा जानकर मिश्रीमलजीभाईने तुरंत ही तैयारी की और पालिताणा बिराजमान पूज्यपाद तारक गुरुदेव श्री विजयकनकसूरीश्वरजी म.सा. तथा पू. मुनिवरश्री कंचनविजयजी म. आदि के पास जाकर दीक्षा के मुहूर्त कहे कलापूर्णसूरि - ४
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