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________________ उनके धर्मपत्नी शेरबाई भी ऐसे ही, नाम के मुताबिक गुणवाले थे । उनका शौर्य शेर-सिंह जैसा था । स्त्री-सहज भय उनकी रगमें भी नहीं था । पूरे गांवमें उनका प्रभाव था । बड़े-बड़े लोग भी उनकी सलाह लेने. आते । वे जितने निर्भय थे उतने ही परोपकारी भी थे । आस-पास कोई बिमार हो तो दवा करने दौड़ जाते थे। घर का उपचार और औषधि की जानकारी भी जोरदार थी । लक्ष्मीचंदभाई के पुत्र पाबुदान और उनकी धर्मपत्नी खमाबाई । खमाबाई भी पाबुदान जैसे ही प्रकृति से भद्रिक, सरल, शांत और धर्म की रुचिवाले थे । (पूज्य आचार्यश्री बहुत बार कहते थे कि मेरी मां खमाबाई मुक्तिचंद्रविजयजी की मां भमीबेन जैसीही थी - आकृति और प्रकृति से मिलती-जुलती ।) फलतः उनके पूरे कुटुंबमें धर्म के संस्कार छा गये थे। पाबुदानभाई की संतानश्रेणिमें ३ पुत्र तो अल्पायुषी थे । थोड़ा समय जीकर मृत्यु पाये । पुत्रियोंमें चंपाबाई तथा छोटीबाई जीवित रहे । अक्षयराज का जन्म : तीन पुत्रों की मृत्यु के बाद खमाबाई की कुक्षि से वि.सं. १९८०, वै.सु. २, शाम ५.३० बजे एक तेजस्वी पुत्ररत्न का जन्म हुआ । जिसका नाम रखा गया : अक्षयराज । सचमुच इस आत्मा का जन्म अक्षयराज्य (मोक्ष-पद) की साधना के लिए ही हुआ था । लेकिन यह बुआने कैसे जान लिया होगा ? अक्षयराज, सचमुच बचपन से ही अद्भुत था। इसका आंतरिक व्यक्तित्व तो ओजस्वी था, लेकिन बाह्य व्यक्तित्व भी इतना ही हृदयग्राही था । गुलाब की कली जैसा हंसता-खीलता मुख-कमल, शांत-प्रशांत और मधुर वाणी... पासमें आते ही इसका व्यक्तित्व लोगों को आकर्षित करता था । ४-५ वर्ष की उम्रमें अक्षय गांवमें चलती स्कूल (जिसे मारवाड़में 'गुरोशारी शाल' कही जाती हैं) में पढने गया । अंक, बारह-अक्षरी, गणित, लेखन इत्यादि के अभ्यासमें आगे बढने लगा । बुद्धि की पटुता और शांत स्वभाव से वह सब विद्यार्थीओंमें अलग प्रतीत होता था । (३३८ womooooooooomwww कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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