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आज भी राजस्थान की प्रजा साहसिकोंमें अग्रणी हैं । भारत के कोने-कोनेमें राजस्थानी फैल गये हैं । शायद ही कोई ऐसा प्रांत होगा जहाँ राजस्थानी बच्चा न हों ।
समृद्ध फलोदी नगरी : ऐसी महान धरती के एक संत की बात आज हमें जाननी हैं ।
राजस्थान की पुरातन राजधानी जोधपुर से ८० मील दूर फलोदी नाम का मनोहर नगर हैं ।
१७ जितने नयनरम्य जिनालय... ! उसमें भी पार्श्वनाथ भगवान के मंदिरमें नीलवर्णी, मनमोहक, शांत मुद्रायुक्त श्री पार्श्वनाथ भगवाननी प्रतिमा...! अनेक रमणीय धर्मस्थान...! १००० से भी ज्यादा जैनों के घर !
ऐसी अनेक विशेषताओं से फलोदी शोभ रहा था, यद्यपि आज तो जैनों के घर बहुत कम हो गये हैं । व्यवसायार्थ मद्रास, मुंबई, रायपुर, पनरोटी, सोलापुर इत्यादि अनेक शहरोंमें फलोदी निवासी जा बसे हैं ।
दादा लक्ष्मीचंदभाई :
आज से (वि.सं. २०४४) १०० से भी ज्यादा वर्षों पहले फलोदीमें लुक्कड़ परिवार के एक सेठ बसते थे । नाम था लक्ष्मीचंद ।
लक्ष्मीचंदभाई के तीन पुत्र : (१) पाबुदान, (२) अमरचंद, (३) लालचंद ।
तीनों भाईओं की प्रकृति अलग अलग...! कुदरत सचमुच बहुत ही विचित्र हैं । उसने एक ही हाथमें पांचों अंगुली भी एक समान नहीं रखी । बड़े भाई पाबुदानभाई स्वभाव से सरल, शांत, धर्मनिष्ठ और उदात्त मनवाले थे । बीचके अमरचंदभाई व्यवहारकुशल थे । व्यवहार की प्रत्येक उलझन को अपनी विशिष्ट प्रतिभा से एकक्षणमें सुलझाते थे । छोटेभाई लालचंद खेल-कूद के शौकीन और थोड़े मनमोजी भी थे ।
तीनों की अलग-अलग शक्तियां एक-दूसरे को पूरक बनती थी और लक्ष्मीचंदभाई का परिवार सुखपूर्वक चल रहा था ।
लक्ष्मीचंदभाई मात्र नामसे ही लक्ष्मीचंद नहीं थे, लक्ष्मीदेवी की कृपा भी उनके उपर ठीक-ठीक थी । वे स्वभाव से उदार, कडक, बुद्धिशाली तथा कर्मठ होने के कारण सबसे विशिष्ट प्रतीत होते थे । (कहे कलापूर्णसूरि - ४0000665555 Booooo® ३३७)