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विद्वान मुनि भी आतुर रहे हैं। दो साल पहले सुरतमें पूज्यश्री की खास निश्रा प्राप्त करने के लिए ही मुनिश्री अजितशेखरविजयजीने मुहूर्त इत्यादि भी गौण किया था । मुनिश्री अजितशेखरविजयजी की पंन्यास - पदवी पूज्यश्री के हाथों सुरतमें हुई थी । इसके लिए तीन बार मुहूर्त बदलाये थे । चाहे जो मुहूर्त आये लेकिन पूज्यश्री की निश्रा मिले, यही मेरे लिए मुख्य हैं । पद ग्रहण करनेवाले ज्योतिष आदिमें विद्वान मुनिश्री की ऐसी श्रद्धा थी । ऐसे श्रद्धेय गुरुदेवश्री की मंगलनिश्रा हमें मिल रही हैं, वह हमारा बड़ा सद्भाग्य हैं ।
यह पद-प्रदान हो रहा हैं उस प्रसंग पर मैं तो मात्र इतना ही कहूंगा : मैं इस पद के लिए योग्य बनूं, पदसे होते मद से दूर रहूं । श्री जिनशासन की यत्किंचित् भी सेवा करके धन्य बनूं - इतना ही मनोरथ हैं ।
बचपनमें हममें संस्कार देनेवाले संसारी मातुश्री भमीबेन इस अवसर पर याद आये बिना नहीं रहते हैं । दीक्षा के बाद नित्य योगक्षेम करनेवाले पूज्य दोनों गुरुवर्य तथा विद्यागुरु पू.पं. श्री कल्पतरुविजयजी म. को कैसे भूल सकते हैं ? हमारे सहाध्यायी पू.पं. श्री कीर्तिचंद्रविजयजी, पू. कुमुदचंद्रविजयजी, पू. पूर्णचंद्रविजयजी को भी कैसे भूल सकता हूं ?
मेरी प्रेरणा से बालवयमें मेरे साथ दीक्षित बननेवाले गणिश्री मुनिचंद्र वि. का हर कार्यमें मुझे पूरा साथ - सहकार मिला हैं । इस प्रसंग पर मैं सबका कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करता हूं । इस पद के लिए मैं योग्य बनूं-ऐसी चतुर्विध संघ समक्ष याचना करता हूं ।
नूतन गणिश्री तीर्थभद्रविजयजी :
अनंत सिद्ध भगवान को तथा जिन्हें गुरुमैया कह सकूं ऐसे पूज्य आचार्य भगवंत को नमस्कार करके, सर्व गुरु-भाईओं को नमस्कार करके जो कुछ अंतर की बात हैं वह दो ही शब्दमें व्यक्त करनी हैं ।
आज के शुभ दिन पूज्य गुरु भगवंतने जिस पद का दान किया हैं, उस प्रसंग पर याद आते हैं : भगवान महावीरस्वामी और गौतमस्वामी । मदसे धमधमते इन्द्रभूति को भगवान महावीर कहे कलापूर्णसूरि ४
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