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तीर्थमाल प्रसंग, कटारिया - कच्छ, वि.सं. २०४७
२७-११-२०००,
मृगशीर्ष शुक्ला
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सोमवार
द्वि.
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जैनेतरों को भी नोट लेनी पड़े कि यहाँ (जैनोमें) ऐसी जोरदार योगसाधना हैं कि जो महासमाधि तक तत्काल पहुंचा दे, ऐसी शैलीमें यह ललित विस्तरा टीका श्री हरिभद्रसूरिजी द्वारा लिखी गई हैं ।
पूर्वाचार्योंने कैसा सुंदर तैयार करके हमारे सामने रखा हैं । पर हमारे पास खाने की फुरसत नहीं हैं । खाने जितना भी हम प्रमाद उड़ा नहीं सकते हैं । दूसरा आदमी ज्यादा से ज्यादा आपके लिए स-रस भोजन बना देगा, लेकिन खाने की क्रिया तो आपको ही करनी पड़ेगी न ? शास्त्रकार ज्यादा से ज्यादा तो मुक्ति की सुंदर प्रक्रिया आपके सामने रख देते हैं, परंतु साधना तो आपको ही करनी पड़ेगी न ?
* चैत्यवंदन आदिमें स्थान, वर्ण, अर्थ और आलंबन का प्रयोग करना है । बहुत काल के अभ्यास के बाद इन चारों के फलरूप अनालंबन योग मिलता हैं ।
ज्यादा करके काउस्सग्गमें अनालंबन योग प्राप्त होता हैं । काउस्सग्ग से पहले बोला जाता सूत्र अरिहंत चेइआणं महत्त्वपूर्ण
कहे कलापूर्णसूरि - ४wwwwwww. ३२१