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________________ हमारे पास आदर रूपी आबरु हो तो श्रद्धा, मेधा इत्यादि एक दिन मिलेंगे ही । आदर जोरदार हो और शायद हमारा कभी उपयोग न भी रहे तो भी ज्यादा चिंता न करें । आदर ही उपयोग को खींच लायेगा । गन्ना, गन्ने का रस, गुड़, मिश्री और शक्कर इन पांचोंमें मीठास क्रमशः ज्यादा से ज्यादा होती हैं उसी तरह श्रद्धा आदिमें मीठाश क्रमशः ज्यादा से ज्यादा होती हैं । गन्ने के स्थान पर आदर हैं। आदर अटूट रहे तो श्रद्धा आदि मिलेंगे ही । गन्ने पासमें हैं तो रस, गुड़ इत्यादि भी मिलेंगे ही । सबका मूल आदर हैं । जैसे मिश्री शक्कर आदि का मूल गन्ना हैं । - 88 सम्यकत्व के लक्षण शम : उदयमें आये हुए या आनेवाले क्रोधादि कषायों को शांत करने की भावना रखकर, समता रखनी । संवेग : इच्छा हैं बल्कि मात्र मोक्ष प्राप्ति की । निर्वेद : संसारी जीव की प्रवृत्ति हैं, परंतु संसार के पदार्थोंमें आसक्ति नहीं हैं । अनुकंपा : जगत के सर्व जीवों को स्व-समान मानकर सबके प्रति वात्सल्यभाव, करुणाभाव । ३२० ॐ आस्तिकता : श्रद्धा, जिनेश्वर और उनके द्वारा बोधित धर्ममें अपूर्व श्रद्धा । ॐ कहे कलापूर्णसूरि - ४
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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