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उस समय पूज्यश्री के साथ भानुविजयजी यह सब संभालते । पूज्यश्री का यही मिशन था : साधु बढाने । सहयोगी तो बादमें मिले । १२ वर्ष के बाद रामविजयजी मिले । उसके पहले भी संघर्ष करते ही रहे । गुरु को १० शिष्य होने के बाद ही ११वाँ शिष्य मेरा ऐसी प्रतिज्ञा थी ।
दीक्षा लेनेमें उन्हें स्वयं बहुत तकलीफ पड़ी हैं । व्यारा से भागकर ३६ मील एक रात्रिमें चलकर बाद में गाडीमें बैठकर यहाँ तलेटीमें दीक्षा ली हैं । धर्मशालामें ले सके वैसा संयोग नहीं था । मंजूरी के बिना कौन दीक्षा दिलाने की हिंमत करेगा ? अभी तो तलेटीमें कोई दीक्षा नहीं लेता । लेकिन उन्हें आदिनाथ प्रभु की कृपा मिलनेवाली होगी ।
किसीने उन्हें खींचे नहीं, स्वयं खींचाकर आये हैं। जन्मांतरीय अधूरी साधना पूरी करने ही आये होंगे ।
भगवान महावीर छद्मस्थ अवस्थामें रहे, उस जगह (नांदियामें) उनका जन्म हुआ हैं । आबु, नांदिया, दियाणा, मुंडस्थल, वडगाम, वासा, ओसिया, भांडवजी इत्यादि स्थलोंमें भगवान महावीर विचरे हैं । इन सब स्थानोंमें भगवान महावीर हैं। भगवान के इन पवित्र परमाणुओं को उन्होंने ग्रहण किये होंगे ।
_ 'श्रमणों को बढाना हैं । बिना श्रमण, शासन नहीं चलेगा ।' यह उनका मिशन था ।
कस्तुरभाई आये तो भी यही पूछते : यह (ओघा) कब लेना हैं ? जिसके साथ नजर मिलाते उसे दीक्षा प्रायः मिल जाती, ऐसी इनकी लब्धि थी ।
वि.सं. २०२०में पिंडवाड़ामें उनका चातुर्मास था । ५५ साधु थे । मैंने २०२०में पिंडवाड़ामें उनके साथ एक ही चातुर्मास किया हैं।
दीक्षा का मिशन उठाया पू. प्रेमसूरिजीने । चलाया उनके वफादार शिष्य पू. रामचंद्रसूरिजीने ।
__ पू. रामचंद्रसूरिजी की दीक्षा के पहले पू. प्रेमसूरिजीने १० मुनिओं को तैयार किये । १० दीक्षा हो गई थी । उन सबको पू. दानसूरिजी के शिष्य बनाये । प्रारंभमें ही इतना प्रभाव था तो बादमें कितना बढा होगा ? संसार से खींचने के बाद वे मुनिओं (कहे कलापूर्णसूरि - ४00 amoomsoom २९५)