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हम ध्यानी बनते हैं तब भगवान ध्येय बनकर हमारे ध्यानमें आते हैं । अगोचर प्रभु योगी को गोचर बनते हैं । अलख भगवान को योगी लक्ष्यरूप से प्राप्त करता हैं ।
_ 'यतो वाचो निवर्तन्ते, न यत्र मनसो गतिः ।
शुद्धानुभव - संवेद्यं, तद् रूपं परमात्मनः ॥' 'जहाँ सब वाणी अटक जाये । जहाँ मनकी गति स्थंभित बन जाये । वह शुद्ध अनुभव से संवेद्य प्रभु का रूप हैं ।' - ऐसा शास्त्रकारोंने कहा हैं । .
वाणी को रोकने के लिए स्वाध्याय हैं । मन को रोकने के लिये ध्यान हैं, समाधि हैं ।
मनकी सरहद पूरी होती है, उसके बाद ही समाधि की सीमा शुरु होती हैं ।
ऐसे भगवान को प्राप्त करने के लिए आज के पवित्र दिन संकल्प करें ।
'कडं कलापूर्णसूरिए' पुस्तक प्राप्त हुई । अभी & तो हाथमें ही ली हैं परंतु,
First Impression is last Impression प्रथम दृष्टिमें ही प्रभाविक हैं ।
- गणि राजयशविजय
सोमवार पेठ, पुना
[२२८Woooooooooooooooooom कहे कलापूर्णसूरि - ४)