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भगवान के दर्शन होने के बाद कुछ देखना अच्छा नहीं लगता। यह सम्यग्दर्शन की निशानी हैं। क्षीरसमुद्र का पानी पीने के बाद खारा पानी कौन पीयेगा ? गुलाबजामुन खाने के बाद तुच्छ भोजन कौन खायेगा? परब्रह्ममें मग्न को सांसारिक विषयों में रुचि कैसे होगी?
भगवान के उपकार सुनने में रस पड़ता हो तो भी पुण्योदय समझें । हमें वैराग्य (भले वह ज्ञानगर्भित हो या दुःखगर्भित) हुआ उसमें भी भगवान का ही प्रभाव हैं, यह न भूलें ।
सर्व स्थानों पर होता बिजली का मूल पावरहाऊस हैं, उसी तरह दिखते हुए शुभ का मूल भगवान हैं । बीचमें कनेक्शन न हो तो लाइट नहीं मिलती । भगवान के साथ कनेक्शन न हो तो भगवत्ता की अनुभूति नहीं होती । अविच्छिन्न गुरु पंरपराने हमें आखिरमें भगवान तक जोड़े हैं । अविच्छिन्न गुरु-परंपरा ही भगवान के साथ हमें जोड़ती हैं।
जहाँ भगवान को नमस्कार हुआ उसी समय भगवान के साथ अनुसंधान होता हैं । अपेक्षित सभी गुण भगवान के पास से ही मिलेंगे, ऐसा भाव हो तो भगवान के साथ अनुसंधान हुए बिना नहीं रहता ।
ये सूत्र (आगम) भगवान के साथ जोड़ने वाले तंतु हैं । सूत्र अर्थात् रस्सी ! बालपनमें रस्सी से माचीस के बोक्ष बांधकर हम खेल खेलते, वह याद आ जाता हैं ।
सूत्र तो भगवान की वाणी हैं। भगवान की शक्ति के वाहक हैं सूत्र ! सूत्र यदि बराबर धारण करें तो सर्वत्र भगवान दिखेंगे। सूत्र के एकेक अक्षरमें भगवान छिपे हुए हैं । शक्रस्तवमें 'सर्वज्ञानमयाय, सर्वध्यानमयाय, सर्वमन्त्रमयाय, सर्वरहस्यमयाय' यों ही नहीं कहा ।
भगवान तो सर्व जीवों के नाथ बनने के लिए तैयार हैं, पर हम उनकी शरण स्वीकारें तो । हमारा योग-क्षेम नहीं होता, क्योंकि भगवान की शरणागति हम स्वीकारते नहीं हैं।
'वस्तु विचारे रे दिव्य नयनतणो रे, विरह पड्यो निरधार, तरतम जोगे रे तरतम वासना रे, वासित बोध आधार ।'
- पू. आनंदघनजी (२२० wwwwwwwww wws कहे कलापूर्णसूरि - ४)