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________________ स्वाध्याय मग्नता ३०-१०-२०००, सोमवार कार्तिक शुक्ला कहे कलापूर्णसूरि ४ - - * गृहस्थों के लिए तीन या पांच, लेकिन साधुओं के लिए सात बार चैत्यवंदन का विधान हैं । सम्यग्दर्शन की शुद्धि के लिए यह विधान हैं । सम्यग्दर्शन न आया हो तो मिलता हैं । मिला हो तो विशुद्ध बनता हैं । ३ - मोक्ष हमारा अंतिम साध्य हैं, लेकिन वह तो यह देह छूटने के बाद, पर इसी जन्ममें साधने जैसा क्या हैं ? सामायिक समता भाव । समता भाव यदि न साध सके तो मोक्ष नहीं साध सकेंगे । समता तो ही मिलेगी यदि भगवान की भक्ति होगी । इसलिए ही सामायिक के बाद चउविसत्थो आदि हैं । समता स्व-बल से नहीं मिलती, इसके लिए भगवान को प्रार्थना करनी पड़ती हैं । इसलिए ही चउविसत्थो आदि आवश्यक हैं । राजा के यहाँ काम करनेवाला जैसे बोझ उतारता हैं, उसी तरह हम आवश्यक पूरे कर देते हैं, किंतु इसमें ही साधना का अर्क समाया हैं, वह नहीं समझते । छः आवश्यकोंमें सामायिक तृप्ति हैं । दूसरे पांच भोजन हैं । भोजन के बिना तृप्ति कैसे मिलेगी ? शरीर को तृप्ति भोजन ळकळ २१५
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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