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________________ अनाज की वृद्धि करनी हो तो बोना ही पड़ता हैं इतना तो किसान भी जानता हैं । बीजे वृक्ष अनंतता रे, प्रसरे भू-जल योग; तिम मुज आतम संपदा रे । - पू. देवचंद्रजी हमारी शक्ति पर ही इतने मुस्ताक हैं कि कभी भगवान या गुरु के समक्ष झुकते ही नहीं । नमे कौन ? भगवान के गुण सर्वत्र व्याप्त हैं । इन गुणों का ध्यान करते समापत्ति होती हैं । स्वयं के ज्ञानादि को भगवान के गुणोंमें एकमेक बना देना वह समापत्ति कही जाती हैं । पानीमें दूध मिल गया फिर पानी कहाँ रहा ? वह दूध बन गया । इस तरह आत्मा कहाँ रही ? वह स्वयं भगवान बन गयी । उस समय ध्याता को अपूर्व आनंद आता हैं । ऐसा भाव इस जन्ममें मिल सकता हैं । पूरी संभावना हैं । फिर भी इसके लिए प्रयत्न भी कौन करता हैं ? माला - कायोत्सर्ग इत्यादि कब करने ? नींद आये तब । बूढा आदमी कुटुंबमें बेकार गिना जाता हैं, उसी तरह कायोत्सर्ग आदि की प्रक्रिया हमने एकदम बेकार गिनी हैं । इस जन्ममें अगर नहीं करेंगे तो कब करेंगे ? गिरिराज की गोदमें नूतन वर्षमें ऐसा संकल्प नहीं करें तो कब करेंगे ? 'निंदा के समय आगबबूला हो जानेवाला, बात-बातमें गुस्सा करनेवाला मैं हूं । अब मुझे बदलना हैं । भगवान की भक्ति के प्रभाव से मैं बदलूंगा ही ।' ऐसा संकल्प करो । भगवान की भक्ति के प्रभाव से जीवों के प्रति अद्वेष प्रकट होता ही हैं । 'सर्वे ते प्रियबान्धवाः न हि रिपुरिह कोऽपि ' शांतसुधार सब तेरे प्रियबंधु हैं । यहाँ कौन शत्रु हैं ? ऐसा सब, भगवान की भक्ति, भगवान के शास्त्र सीखाते हैं । मोह के सामने ये विचार शस्त्रों का काम करेंगे । शत्रु आक्रमण करते हो तब शस्त्र बाहर नहीं निकालनेवाला हार जाता हैं । हम शस्त्र बाहर नहीं निकालकर बहुत बार हारे हैं । २०८ WWW कहे कलापूर्णसूरि ४
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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