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________________ के उपासक बनते हो । सदागम के उपासकों को मोह कुछ कर नहीं सकता । मोह आपको सीखाता हैं : जीवों पर द्वेष करो । भगवान आपको सीखाते हैं : जीवों पर प्रेम करो । मेरे पास तो ऐसी ही बातें हैं। आपको अच्छी लगे तो बोलूं, ऐसा मैंने नहीं सीखा । संख्या घट जाये उसकी चिंता नहीं हैं । भगवानने जो कहा हैं, शास्त्रोंमें जो लिखा हैं और मुझे इस प्रकार जो अच्छा लगा हैं, वही मैं कहूंगा, आपको अच्छी लगे वह नहीं । गुलाबजामुन आदि के बहुत स्वाद चखे । अब आत्माका स्वाद चखो । इसके लिए रुचि उत्पन्न करो। इस रुचि के बिना आध्यात्मिक क्षेत्रमें हम अंधे हैं, इतना नक्की समझें । * आंखवाला आदमी रास्तेमें सीधा चलता हैं या टेढामेढा ? स्वाभाविक हैं : देखता आदमी रस्तेमें कहीं भी नहीं टकरायेगा। श्रद्धा की आँखवाला आदमी आध्यात्मिक क्षेत्रमें टेढा-मेढा नहीं चल सकता । धनमें ही संतोष न मानें पूज्यश्रीने पूछा : (अमेरिकन जिज्ञासु मित्रों को) रोज सुबह होते ही कहाँ दौड़ते हो, क्यों दौड़ते हो ? धन कमाने के लिए ? उसके बाद सुख मिलता हैं? ठीक हैं । धन जीवन ही निर्वाह का साधन हैं, लेकिन उसमें सुख हैं ऐसा मानकर संतोष प्राप्त न करें। इस तीर्थमें क्यों आये हो ? क्या कमाई होगी ? कमाईमें फरक समझ में आता हैं ? प्रभुभक्ति द्वारा ही सच्ची कमाई होगी। - सुनंदाबहन वोराहा [१८००ooooooooooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि-४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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