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प्रभु जैन नया मंदिर
मद्रास
पदवी प्रसंग, मद्रास, वि.सं. २०५२, माघ शु. १३
१४-१०-२०००, शनिवार
कार्तिक शुक्ला - १
दोपहर ४.००
पू. देवचंद्रजी स्तवन * जो साधक प्रभुका शब्दनय से दर्शन करता हैं (अर्थात् प्रभुमें रही हुई अनंत गुण संपत्ति प्राप्त करने की इच्छा से दर्शन करता हैं ।) उसकी संग्रहनय की दृष्टि से आत्मामें पड़ी हुई शुद्ध सत्ता एवंभूतनय से पूर्ण शुद्धता को प्राप्त करती हैं । अर्थात् संग्रहनय एवंभूत नयमें परिणाम को प्राप्त करता हैं ।
* दर्पण के बिना शरीर के स्वरूप का पता नहीं चलता। भगवान के बिना आत्मा के स्वरूप का पता नहीं चलता।
मूर्ति की तरह आगम भी बोलते भगवान हैं। इसलिए आगम को भी दर्पण की उपमा दी हैं ।
अंदर सम्यग्-दर्शन हुआ हो तो ही आप सच्चे अर्थमें मूर्तिमें भगवान के दर्शन कर सकते हो, तो ही आगम सच्ची तरह पढ सकते हो ।
सम्यग् - दृष्टि के दर्शन को ही शब्दनय सच्चे दर्शन के रूपमें स्वीकार करता हैं ।
१६२ 000000000000000000 कहे