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________________ समवायांग - वाचना, धामा, वि.सं. २०३७ ३-१०-२०००, शुक्रवार अश्विन शुक्ला १५ दोपहर ४.०० पू. देवचंद्रजी के स्तवन पांचवां स्तवन * भगवान का ऐश्वर्य जानने से हमें क्या लाभ ? वह प्राप्त करने की हमें झंखना जगती हैं । आत्मामें एक बार झंखना जगने के बाद वह उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करेगा ही । जहां जहां हमारी रुचि हैं, वहां वहां हमारी ऊर्जा हैं । ऊर्जा हमेशा इच्छाको ही अनुसरती हैं। ज्यों ज्यों प्रभु की रुचि बढती जाये, त्यों त्यों दोषों से निवृत्ति होती जाती हैं । * पाटण कनासे के पाड़े में स्फटिक की लाल प्रतिमा देखकर मैंने पूछा : 'क्या ये वासुपूज्य स्वामी हैं ?' पूजारीने कहा : नहींजी । यह तो पीछे के परदे के कारण लाल दिख रही हैं । परदा हटते ही शुद्ध स्फटिकमय प्रतिमा शोभने लगी । हमारी आत्मा भी शुद्ध स्फटिक जैसी ही हैं, पर राग-द्वेष से वह रागीद्वेषी लगती हैं । १६००००0000 कहे कलापूर्णसूरि - ४)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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