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धक्का मारकर श्रीपाल को समुद्रमें फेंकने की धवल की अधमता ।
उल्टे सिर बंधे हुए धवल शेठ को छुड़ाने की श्रीपाल की उत्तमता ।
श्रीपाल को चंडाल के रूपमें दिखाने की धवल की कोशिश ।
धवल के विषयमें थोड़ा भी अशुभ नहीं सोचने की श्रीपाल की सज्जनता ।
श्रीपाल को जान से मारने का धवल का प्रयत्न ।
ये सब प्रसंग दोनों की सज्जनता और दुर्जनता की पराकाष्ठा बताते हैं । जितने अंशमें आपका शत्रु दुष्ट होता हैं उतने ही अंशमें आप उसके सज्जन मित्र बनें । आपकी मित्रता तो ही असरकारक बन सकेगी।
दुर्जन स्वयं की दुर्जनता नहीं छोड़ता तो सज्जन स्वयं की सज्जनता क्यों छोड़े ? चंदन को काटो, जलाओ या घिसो, पर वह अपनी सुवास नहीं छोड़ता, उसी तरह सज्जन किसी भी स्थितिमें अपनी सज्जनता छोड़ता नहीं हैं। श्रीपाल इसका श्रेष्ठ उदाहरण हैं ।
निश्चय और व्यवहार • भगवानने निश्चय और व्यवहार दो धर्मों का उपदेश दिया हैं । तत्त्वदृष्टि / स्वरूपदृष्टि निश्चय धर्म हैं और उस दृष्टि के अनुरूप भूमिका के योग्य प्रवृत्ति, आचारादि व्यवहार धर्म हैं । दोनों धर्म रथ के पहियों जैसे हैं। रथ चलता हैं तब दोनों पहिये साथ चलते हैं।
कहे
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