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________________ पालीताणामें ही नहीं, यह साथ मिलने का कार्य सर्वत्र संघमें छा जायेगा, ऐसी श्रद्धा हैं । * मुनि अमितयशविजयजी : पुण्योदय से मिले जीवन को सफल बनाने के लिए धर्म की जरुरत हैं । जिसके जीवनमें अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म हैं उसे देव भी नमते हैं । ऐसा धर्म हृदयमें बस जाये तो कल्याण हो जाय । तप की अनुमोदना के लिए हम सब एकत्रित हुए हैं । इस साल मैं मासक्षमण करूंगा ऐसा मनमें भी नहीं था, पर प्रभु आदिनाथ दादा, अध्यात्मयोगी पू. गुरुजी तथा पू. कलाप्रभसूरिजी की कृपा काम कर गई । पू. कलाप्रभसूरिजी रोज कहते थे : 'हो जायेगा । हो जायेगा । तूं कर दे ।' इनके इतने प्रेरक वचन मेरा उत्साह बढा देते थे । पधारे हुए पूज्य आचार्य भगवंतों का मैं ऋणी हं । आये हुए आप सब कंदमूल, रात्रिभोजन को तिलांजलि देना । कम खाना, गम खाना, नम जाना - ये तीन सूत्र याद रखें । सभी महात्मा मेरे उपर कृपा-दृष्टि बरसायें, जिससे मैं ज्यादा से ज्यादा तप कर सकू । वर्धमान तप की १०० ओली जल्दी पूरी करूं - ऐसी पूज्यश्री के पास आशिष मांगता हूं । श आत्म-साधक अल्प होते हैं । लोकोत्तरमार्ग की साधना करनेवालोंमें भी मोक्ष की ही अभिलाषावाले अल्पसंख्यक होते हैं । तो फिर लौकिकमार्ग या जहाँ भौतिक सुख की अभिलाषा की मुख्यता हैं, वहाँ मोक्षार्थी अल्प ही होंगे न ? जैसे बड़ी बाजारोंमें रत्न के व्यापारी अल्पसंख्यक होते हैं वैसे आत्मसाधक की संख्या भी अल्प होती हैं । 80 (कहे कलापूर्णसूरि - ४00mmonommonsoon १४७)
SR No.032620
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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