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हैं । सत्य हो वह बोल ही देना, ऐसा नहीं हैं, परंतु जो बोलो वह सत्य होना चाहिए, यह व्रतका रहस्य हैं । सत्य बोलनेवाला कौशिक तापस मरकर नरकमें गया हैं । जूठ बोलकर जीवों को बचानेवाला श्रावक स्वर्गमें गया हैं ।
__ इसी संदर्भमें कलिकाल सर्वज्ञ आचार्यश्री कुमारपाल कहां छुपाया हैं ? यह जानते हुए भी 'मैं नहीं जानता' ऐसा कहकर जूठ बोले थे । जिससे जीव बचे वह सत्य ! जिससे जीव का हित हो वह सत्य ! इससे विपरीत असत्य ।
आचार्यश्री द्रव्यसे मृषावाद बोले थे, किंतु भावसे सत्य ही बोले । मुख्य व्रत अहिंसा ही हैं । दूसरे व्रत पहले व्रतकी रक्षा के लिए ही हैं । यह टूट जाय तो दूसरे व्रत टूट ही जाते हैं । 'बाड़ धान्य के लिए हैं, बाड़ के लिए नहीं । अहिंसा के लिए सत्य हैं, सत्य के लिए अहिंसा नहीं हैं ।
___ अजीव के संदर्भ में सत्य या असत्य कुछ नहीं हैं, परंतु इस निमित्तसे मिथ्या भाषण से जीवका अहित होता हैं। सिर टकरायेगा तो खंभे को कुछ नहीं होगा, आपका सिर फूटेगा । अजीवकी सम्यक् प्ररूपणा से आखिर जीवका ही हित होगा ।
सिद्ध भगवंतोंकी प्ररूपणा अन्यथा करो तो उनका कुछ अहित नहीं होता, किंतु प्ररूपणा करनेवाले का अहित अवश्य होता हैं।
वनस्पतिमें जीव तो अभी जगदीशचंद्र बोझने कहा तब विज्ञानने माना, किंतु विज्ञान पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु आदिमें कहां जीव मानता हैं ? इसके लिए अनेक जगदीशचंद्र बोझ अभी होने बाकी हैं । वे कहेंगे तब विज्ञान मानेगा । किंतु हमें इतना इंतजार करने की जरुरत नहीं हैं । हमारे लिए तो सर्वज्ञ भगवान वैज्ञानिक ही हैं । उनका कहा हुआ हम सत्य मानकर चलें, यही हमारे लिए हितकर हैं ।
* हमारे जमानेमें गृहस्थ भी बहिर्भूमिके लिए बहार जाते थे । बिमार पड़े वही बाड़ेमें जाता था । आज तो साधुमहाराज भी वाड़ा हो तो बाहर शायद ही जाते हैं । वीर्याचार बिलकुल बाजुमें रख दिया हैं ।
- एकबार हमारा चातुर्मास (वि.सं. २०२५) अहमदाबाद कहे कलापूर्णसूरि - ४00ooooooooooooooom ७१)