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________________ ११ दीक्षा प्रसंग, भुज, वि.सं. २०२८, माघ शु. १४ ६.प. नीशर ग २६-७-२०००, बुधवार श्रा. कृष्णा - १० : सात चौबीसी धर्मशाला सामुदायिक 'अरिहंत पद' जाप, पू. हेमचन्द्रसागरसूरिजी : पूज्य आचार्य श्री विजयकलापूर्णसूरिजी बराबर समय पर आ गये हैं । मंत्र - ग्रहण का समय हो चुका है । चलो, सब साथ बोलें : जो शक्ति मुजने मले, आपुं सौने सुख; कर्मना बंधन टाळीने, कापुं सहुना दुःख ॥ १ ॥ मुजने दुःख आपे भले, तो पण खमुं तास; सुख पीरसवा सर्वने, छे मारो अभिलाष ॥ २ ॥ जगना प्राणीमात्रने, व्हाला छे निज प्राण; माटे मन-वच-कायथी, सदा करूं तस त्राण ॥ ३ ॥ आशीर्वाद मुजने मळो, भवो भव ए मुज भाव; त्रस-स्थावर जीवो बधा, दुःखीया को नव थाव ॥ ४ ॥ भवोभव ए मुज भावना, जो मुज धार्युं थाय; तो श्रीजिनशासन विषे, स्थापुं जीव बधाय ॥ ५ ॥ ६० wwwwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि -
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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